नई दिल्ली । साल 2007 में पुणे में बीपीओ कर्मचारी के गैंगरेप और हत्या के दो दोषियों को फांसी की सजा नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा को 35 साल की उम्रकैद की सजा में बदलने वाले बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।इन दोषियों को पुणे के ट्रायल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने फांसी की सजा दी थी। साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट से सजा होने के बाद 2016 में महाराष्ट्र के राज्यपाल और 2017 में राष्ट्रपति ने उनकी दया अर्जी खारिज कर दी थी।
अप्रैल 2019 में सेशंस कोर्ट पुणे ने 24 जून के लिए डेथ वारंट जारी किया। इससे पहले फांसी हो पाती, उन्होंने दया अर्जी के निपटारे और डेथ वारंट में देरी का हवाला देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया। 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने माना कि दोषियों की फांसी की सजा के अमल में गैरवाजिब देरी हुई है। कोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। इस फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है।