हरिशंकर व्यास
पिछले दिनों दुनिया ने देखा और सुना कि ब्रिटेन में रहने वाली भारतीय मूल की एक महिला को किस तरह शंघाई हवाईअड्डे पर 18 घंटे तक रोक रखा गया और उसके भारतीय पासपोर्ट को अवैध बताया गया। कारण क्या था? कारण यह था कि पासपोर्ट पर उस महिला का जन्मस्थान अरुणाचल प्रदेश लिखा हुआ था। चीन ने उस महिला से कहा कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है इसलिए वहां जन्मी किसी व्यक्ति का पासपोर्ट भारत नहीं जारी कर सकता है। उस महिला को बुरी तरह से परेशान किया गया। उसे पानी खरीदने तक से रोका गया। उसकी फ्लाइट छूट गई तो दूसरी फ्लाइट की टिकट खरीदने से रोका गया। बाद में किसी तरह उसने ब्रिटेन में भारतीय दूतावास से संपर्क किया तो उसको वहां से निकाला जा सका। लेकिन उसके अगले दिन चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने भारत के अभिन्न अंग अरुणाचल प्रदेश को जांगनान बताते हुए कहा कि यह चीन का हिस्सा है और चीन इस पर भारत के कब्जे को मान्यता नहीं देता।
चीन पहले भी इस तरह का दावा कर चुका है। इतना ही नहीं आए दिन चीन की सरकार अरुणाचल प्रदेश के अलग अलग हिस्सों के नाम बदलती रहती है। कभी अरुणाचल के किसी पहाड़ का तिब्बती नाम रख दिया जाता है तो कभी किसी नदी का नाम बदल दिया जाता है तो कभी किसी कस्बे का नाम बदल दिया जाता है। चीन अब तक दर्जनों नदियों, पहाड़ों, कस्बों और गांवों के नाम बदल चुका है। जब भी वह ऐसा करता है तो भारत की ओर से एक लाइन की प्रतिक्रिया दी जाती है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और चीन के दावा करने से अरुणाचल उसका नहीं हो जाएगा।
सोचें, चीन इसी तरह के दावे करते करते हुए पूर्वी लद्दाख के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर चुका है। भारत की ओर से भले कहा जाएगा कि कोई भारतीय सीमा में नहीं घुसा है लेकिन हकीकत है कि चीन ने जून 2020 में गलवान घाटी में झड़प के बाद उस इलाके में भूगोल बदल चुका है। भारत की सेना पहले जहां तक गश्त करती थ, कई जगह वह इलाका बफर जोन में बदल चुका है। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश में चीन लंबे समय से अपने पैर फैला रहा है और भाजपा के सांसद व प्रदेश अध्यक्ष रहे तापिर गाओ ने संसद में खड़े होकर कहा कि भारत की सीमा में 50 किलोमीटर से ज्यादा अंदर चीन के सैनिक घुसे हुए हैं। उन्होंने सड़कें और पुल बनाए हैं। डोकलाम में जो हुआ वह भी पूरे देश ने देखा।
क्या इन सबके बावजूद भारत ने कभी चीन के साथ ऐसा कुछ करने का प्रयास किया? भारत के नेताओं के मुंह से चीन का नाम तक नहीं निकलता है। जब चीन अरुणाचल प्रदेश के हिस्सों के नाम बदलता है उसी समय क्या भारत की ओर से अक्साई चिन के उस हिस्से की मांग चीन से नहीं करनी चाहिए, जो पाकिस्तान ने उसे सौंप दी है? अक्साई चिन ऐतिहासिक रूप से भारत का हिस्सा है। लेकिन भारत उस पर दावा नहीं करता है। पीओके लेने की बात कही जाती है तो यह नहीं कहा जाता है कि चीन के कब्जे वाला इलाका भी लेंगे। भारत की ओर से कभी तिब्बत के समर्थन में एक शब्द नहीं निकलता है, जिसे पिछले सदी के पांचवे दशक में चीन ने कब्जा लिया। चार हजार किलोमीटर की लंबी सीमा तिब्बत की थी और वह भारत के लिए बफर का काम करता था। लेकिन भारत तिब्बतियों के अधिकार के समर्थन में नहीं खड़ा होता है। यहां तक कि ताइवान पर चीन के आक्रमणकारी बरताव पर भी भारत खामोश रहता है।
उलटे भारत की ओर से लगातार चीन के साथ कारोबार बढ़ाया जा रहा है। भारत अपनी रोजमर्रा की जरुरतों से लेकर तकनीकी, कृषि व ऑटोमोबाइल जरुरतों के लिए लगभग पूरी तरह से चीन से आयात पर निर्भर हो गया है। अकेले चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा एक सौ अरब डॉलर सालाना की सीमा पार कर गया है। चीन आक्रांत है। वह भारत की जमीन पर दावा करता है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का विरोध करता है। पाकिस्तान की खुलेआम मदद करता है। पिछले ही दिनों ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने अपनी तकनीक पाकिस्तान को दी। अमेरिकी संसद को रिपोर्ट देने वाली एक संस्था ने बताया है कि चीन ने अपनी युद्ध तकनीक का लाइव परीक्षण उस युद्ध के दौरान कराया। इसके बावजूद भारत न सिर्फ चीन की ज्यादतियों पर चुप रहता है, बल्कि उसके साथ लगातार कारोबार बढ़ाता जा रहा है। भारत के सारे शीर्ष मंत्री पिछले कुछ दिनों में चीन होकर आए हैं। सोचें, कैसी कूटनीति है कि अमेरिका ने टैरिफ बढ़ाया तो उससे व्यापार संधि फाइनल करने की बजाय भारत ने चीन और रूस से दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी और उनके साथ व्यापार बढ़ाने की बातें शुरू कर दीं
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