सिरौलीगौसपुर बाराबंकी। दुर्गा पूजा स्थल टिकैतनगर में चल रही श्रीमद भागवत कथा के छठे दिन कथावाचक भरद्वाज ने राम वनवास का इतना सचित्र वर्णन किया कि सभी श्रोता रो पड़े भगवान श्रीराम ने अपने कुल की मर्यादा को ध्यान में रखकर व अपने पिता के वचन की रक्षा के लिए प्रसन्न होकर सारा राज-पाट त्याग कर वन चले गये। इससे हमें सीख लेनी चाहिए कि हमें स्वयं की चिंता न करते हुए यदि जरूरत पड़े तो अपने परिवार, समाज व देश के लिए सब कुछ त्याग देना चाहिए। कथा व्यास जी ने विविध चौपाईयों के माध्यम से कहा है कि राजा दशरथ दपर्ण में अपना बुढापा देखकर यह निर्णय लिया है कि अपने समस्त राजपाठ को राम को सौंपकर हमें तपस्या करने चल देना चाहिए भगवान की भक्ति में मन लगाना चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होने कहा कि आज के बुजुर्गों को राजा दशरथ से प्रेरणा लेनी चाहिए और शरीर में ताकत रहते ही व आंख की रोशनी रहते ही सारी जिम्मेदारी अपने उत्तराधिकारी को सौंपकर भगवान के सुमिरन में लग जाना चाहिए। राजा दशरथ ने अयोध्या वासियों के समक्ष श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रस्ताव रखा मगर यह कार्य कल पर छोड़ दिया परिणाम काफी दुखद रहा इसलिए पूज्य व्यास जी ने कहा कि अच्छे कार्यों को टालने की जगह शीघ्र करना ही श्रेयष्कर होता है। सभी को सदैव प्रसन्न रहने की प्रेरणा भगवान श्रीराम से लेनी चाहिए। भगवान जहां भी रहते हैं प्रसन्न रहते हैं, दुख उनसे कोसों दूर रहता है। कौशिल्या के ऊपर प्रकाश डालते हुए कहा कि बेटे को वनवास होने के बावजूद भी उन्हें अपने पति की वचन याद रहे। माँ कौशल्या नें किसी को दोषी नहीं बताया बल्कि कहा कि यदि माँ कैकयी ने वन जाने को कहा है तो हे राम वनगमन तुम्हारे लिए सैकड़ो अयोध्या के सगान है। वे कहती है कि सुख और दुख तो अपने ही कारणों से होते हैं। भाई हो तो लक्ष्मण जैसा कथा प्रसंग में व्यास ने कहा कि भाई हो तो लक्ष्मण जैसा जब भगवान श्रीराम वनवास जा रहे थे तब लक्ष्मण ने अपनी माता से कहा कि में भी वनवास जाना चाहता हूँ, तो माँ ने कहा कि मैं तो सिर्फ जन्म ही दी हूँ लेकिन असली माता-पिताश्री सीताराम हैं। लक्ष्मण भाई श्रीराम के प्रति समर्पित थे। इसलिए व्यास ने कहा कि भाई हो तो लक्ष्मण जैसा।जब भगवान श्रीराम लखन एवं सीता सहित वन गमन के लिए निकले तो सभी अयोध्यावासी अपने अपने घरों से भगवान के पीछे निकल पड़े। व्यास द्वारा जब यह प्रसंग सुनाया गया तो पंण्डाल में उपस्थित सभी श्रोताओं के आँख से आँसू छलक पड़े। रामचरित्र मानस में माँ कैकेयी बहुत ही महान पात्र है यदि माँ कैकेयी नहीं होती तो रामकथा बाल काण्ड में ही समाप्त हो जाती है। कैकेयी माँ ने ममता में साहस भर कर पुत्र के प्रति कठोर स्नेह का दर्शन कराया है। माँ कैकेयी अगर राम को वनवास नहीं कराती तो अखण्ड भारत का स्वरूप मर्यादा से ओत-प्रोत करके रामराज्य की स्थापना नहीं हो पाती। ममता में तनिक कठोरता का होना अनिवार्य है।श्रीराम जी को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने में माँ कैकेयी ने अपना अनुराग, भाग और सुहाग सब कुछ समर्पित कर दिया। माता सीता पति धर्म के लिए अयोध्या का समूचा सुख छोड़ दिया, भैया लखन भाई की सेवा धर्म को निभाने के लिए सम्पूर्ण वैभव सुख छोड़कर प्रभु श्रीराम एवं माँ सीता की सेवा में चौदह वर्ष अपना जीवनराम वनवास के समय सभी ने अपने अपने धर्म पर चलकर आज के समाज को सही मार्ग दर्शन दिया है। हम सभी को उस धर्म मार्ग पर चलने का चिन्तन मनन करना चाहिए।
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