यूपी चुनाव 2022 : सपा के दाग, पूर्व सीएम अखिलेश पर पड़ रहे भारी


तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं धूल रहे अराजकता, भ्रष्टाचार, मुस्लिमपरस्ती और जातिवाद के दाग
अखिलेश की अयोध्या यात्रा को भी लोग राम विरोधी छवि को कम करने की पहल के रूप में देख रहे

लखनऊ। उत्तर प्रदेश (यूपी) में सपनों के विजय रथ पर सवार अखिलेश यादव को जिलों में अब नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह चुनौती है, समाजवादी पार्टी (सपा) को लेकर जनता के दिलो-दिमाग में चस्पा हो चुकी इमेज की। समूचे यूपी में सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के बारे में लोगों की अजब -गजब धारणा है। लोगों का मत है कि सपा और उसके नेता जातिवादी राजनीति करते हैं, भ्रष्टाचारियों के हितों की ध्यान रखते हैं, मुस्लिम परस्ती करते हैं, जबकि कार्यकर्ता गुंडई करते हैं। सपा तथा उसके नेता एवं कार्यकर्ताओं के बारे लोगों की यह धारणा सपा की इमेज पर लगा ‘दाग’ सरीखा है। ये ऐसे दाग हैं जो सपा पर अमिट रूप से चस्पा हो चुके हैं। न धुलने वाले यही दाग अखिलेश यादव पर भारी पड़ रहे हैं। इस दाग को हल्का करने के लिए अखिलेश यादव अब लोकलुभावना वादे करने के साथ ही धर्म कर्म की बाते कर रहे हैं। इसी क्रम में अखिलेश ने अयोध्या जाकर भगवान रामलला के दर्शन करने का फैसला भी किया है। ताकि लोगों के मन में सपा की अयोध्या और भगवान श्रीराम को लेकर बनी इमेज कुछ तो बदले।

यूपी में गरमा रहे चुनावी माहौल में सपा पर लगे दागो को लेकर जनता की बीच खूब चर्चा हो रही हैं। भाजपा लगातार जनता को इसकी याद दिला रही है। यूपी के लोग अब यह देख रहे हैं कि कभी एमवाई (मुस्लिम + यादव) सूत्र पर चलने वाली सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तीव्र आक्रामकता के कारण अल्पसंख्यकों के हितों पर बोलने से कतरा रहें हैं। अब अखिलेश यादव विकास की गंगा बहाने के वादे के साथ-साथ, कभी विष्णु नगर बसाने की बात करते हैं, तो कभी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के किनारे 108 फीट ऊंची परशुराम की मूर्ति लगवाने की। जबकि यूपी के हर जिले में लोगों ने देखा है कि सपा में हमेशा से ही ‘यादव कुनबे’ का प्रभाव रहा है। पार्टी में ‘यादव’ होना ही सबसे बड़ी अर्हता है और पार्टी संगठन में सिर्फ यादव जाति के नाम वालों का ही बोलबाला रहा है। यूपी के कुछ सीटें तो सिर्फ यादव परिवार के लिए रिजर्व रही हैं। सपा नेता हर बार सत्ता में आने के लिए एमवाई समीकरण यानी मुस्लिम-यादव गठजोड़ का सहारा लेते हैं। सपा सरकार में नौकरियां देने के मामले में भी यादवों समाज के लोगों को प्राथमिकता मिलती थी। अब अखिलेश ने सभी जातियों को समान रूप से तवज्जो देने की रणनीति अपनाई है, ताकि सपा पर लगा जातिवादी राजनीति करने के आरोप को खत्म किया जा सके।

इसी प्रकार सपा पर मुस्लिम समर्थक होने के लगे टैग को खत्म करने के लिए भी अखिलेश यादव अब अल्पसंख्यकों के हितों पर बोलने से कतरा रहें हैं। जबकि समूचे यूपी में अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव जनता के बीच मुल्ला मुलायम के नाम से भी मशहूर हैं। सपा पर लगे मुस्लिम समर्थक टैग को हटाने के लिए ही अखिलेश यादव ने अयोध्या जाने का फैसला किया हैं। पार्टी नेताओं के अनुसार अयोध्या में वह अयोध्या जाकर भगवान रामलला के दर्शन करने जाएंगे। पार्टी के हुल्लडबाज और गुंडई करने वाले कार्यकर्ताओं की वजह से लोगों के मन में सपा को लेकर बनी गुंडागर्दी वाली पार्टी की छवि को खत्म करने पर भी अखिलेश यादव ने ध्यान दिया है। जिसके चलते ही अखिलेश यादव ने पार्टी के उन पांच कार्यकर्ताओं को पार्टी से निष्कासित कर दिया है, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया कानपुर दौरे पर मोदी का पुतला फूंकने के बाद एक कार पर पत्थरबाजी की थी। इसी क्रम में अब अखिलेश यादव किसी ऐसे नेता को साथ सार्वजनिक रूप में नहीं दिख रहे हैं, जिस पर भ्रष्टाचार का और दबंगई करने का आरोप हो। हाल ही में भगवान शर्मा उर्फ़ गुड्डू पंडित को पार्टी में शामिल करने के दौरान लोगों ने अखिलेश यादव के इस फैसले को नोटिस किया। भगवान शर्मा उर्फ़ गुड्डू पंडित पहली बार वर्ष 2007 में बसपा के टिकट से विधानसभा चुनाव जीते थे। उन्हें दबंग नेता माना जाता है, मायावती ने इसी वजह से उन्हें वर्ष 2012 में टिकट नहीं दिया तो उन्होंने सपा में शामिल होकर चुनाव लड़ा। वर्ष 2017 में उन्हें सपा ने टिकट नहीं दिया। अब फिर वह सपा में शामिल हुए हैं लेकिन अखिलेश ने उन्हें अपनी मौजूदगी में पार्टी में शामिल नहीं करवाया, ताकि उनपर दबंग विधायक को पार्टी में शामिल होने का आरोप ना लगे। अखिलेश यादव अब इस तरह की सतर्कता कदम -कदम पर बरत रहे हैं ताकि सपा को लेकर लोगों के जहन में बनी इमेज को बदला जा सके। यह आसान कार्य नहीं है, पर अखिलेश यादव का मानना है कि वह पार्टी पर  मुस्लिम परस्त होने और गुंडागर्दी वाली पार्टी के लगे टैग को खत्म करने में सफल होंगे।