संजीव कुमार बालियान
पहले जब हमारे पास ना तो यातायात के साधन थे ना ही ध्वनि विस्तारक यन्त्र ना ही प्रेस ना ही सोशल मीडिया जैसे शक्तिशाली प्लेटफार्म थे। उन दिनो जनता को एक दिशा में सोचने,कुछ करने या संगठित करने के लिये उपयुक्त साधन भी नहीं थे। तब अवांछनीय व्यक्तियो को सत्ता से हटाने के लिये शस्त्र बल से ही काम लिया जाता था।
रावण, कुम्भकरण, दुर्योधन, कंस, आदि अनीति मूलक वातावरण उत्पन्न करने वाले व्यक्तियों की शक्ति निरस्त करने वाले जिन्होने सशस्त्र आयोजन किये उन्हे परास्त किया सत्ता परिवर्तन किया । उन्हें सम्मान पूर्वक सराहा जाता है।
पुराने जमाने मे योद्धा लोग तलवार से एक दूसरे का सिर काटकर परस्पर निपट लेते थे। परन्तु आज ऐसी लड़ाईयां तो सरकारी कानून के अन्तर्गत असम्भव हो गयी है।
आज किसी देश का प्रधानमंत्री भी बिना न्यायालय की आज्ञा के किसी का वध कर डाले तो उसे जेल मे जाना ही पडेगा और फिर युद्ध के क्रिया कलाप भी इतने मंहगे हो गये है कि एक सैनिक को मारने मे ही हजारो रूपये का खर्च हो जाता है। फिर विजय सैन्य सफलता मे ही नहीं होती। उसके पीछे अन्तराष्ट्रीय गुटबन्दी, सहायता और सहानुभूतियां भी काम करती है।
इस वैज्ञानिक युग मे जो युद्ध हुए उनसे कोई प्रयोजन सिद्ध नही हुआ। अणु युद्ध मे कोई देश किसी दूसरे देश को नही जीतेगा ब्लकि संसार की सामूहिक आत्महत्या का ही दृश्य उपस्थित होगा।
कहने का तात्पर्य इतना भर है कि प्राचीन काल मे अनीति मूलक व अनूपयुक्त वातावरण निर्मित करने वाले व्यक्तियो को निरस्त कर देने भर से वातावरण बदल जाता था। पर अब वैज्ञानिक प्रगति ने उस सम्भावना को समाप्त कर दिया है। पहले कुछ शक्तिशाली शासक ही भला बुरा वातावरण बनाने मे निमित्त होते थे। मगर अब देश के हर नागरिक को अपनी शक्तियां विकसित करने और उपयोग करने की ऐसी सुविधाएं मिल गयी है कि वह स्वंय एक स्वतंत्र ईकाई के रूप मे समाज पर भारी प्रभाव छोडता है।
आज जो पाप, अनाचार, दम्भ, छल, कपट, असत्य , शोषण, आदि दोषो का बाहूल्य होने से समाज मे जो भारी अव्यवस्था उत्पन्न हो रही है। उसके लिये किसी अमूक व्यक्तियो को दोषी ठहराने या उन्हें मारकाट देने से समस्या का हल नही हो सकता है। अब एकमात्र आधार है जो परिवर्तन ला सकता है और वो है -विचार
अब शस्त्रो मे वो शक्ति नही जनत्रत मे उसका स्थान विचारो ने ले लिया है, क्योकि शक्ति जनता के हाथ मे चली गयी है। जन मानस का प्रवाह जिस दिशा मे बहता है उसी तरह की परिस्थितियां बन जाती है। इस जन प्रवाह को विचारो की बदौलत किसी भी तरफ मोडा जा सकता है, जो विचार प्रबल होंगे। वो ही अपने अनूकूल, अनूरूप परिस्थितियां उत्पन्न कर लेगे। इस तथ्य को अच्छी प्रकार समझने के लिये पिछली कुछ क्रान्तियो पर ध्यान देना होगा।
पहले पुरे संसार में राजत्रंत था ,राजा शासन करते थे।उस पद्धति की अनूपयुक्ता रूसी दार्शनिको ने प्रतिपादित की और अपने ग्रन्थो में बताया कि राजतंत्र के स्थान पर जनतंत्र स्थापित किया जाये और जनतंत्र का स्वरूप व प्रतिफल भी उन्होने बताया। यह विचार जनता को प्रिय लगा। उसके फलस्वरूप एक के बाद एक क्रान्तियां होती चली गयी जनता ने विद्रोह कर दिया और राजतंत्रों को उखाडकर प्रजातंत्र स्थापित कर लिये। जनता ने जिस बलबूते पर राज सत्ताऔ को पलटा यह उनकी विचारणा ही थी। प्रजातंत्र की उपयुक्ता पर विश्वास करके साधारण लोगो ने राजतंत्र पलट दिये। इसे विचारशक्ति की विजय ही कहा जायेगा।
एक दूसरी विचार क्रान्ति कार्लमाक्स ने की।जिसमे उन्होने बताया कि साम्यवादी सिद्धान्त ही जनता के सभी कष्टो को दूर करके उनकी प्रगति के पथ को प्रशस्त कर सकता है। उन्होने भी साम्यवाद के स्वरूप ,उसका आधार और प्रयोग प्रस्तुत किये। जनता ने उन्हें समझा, जांचा और विचारशील लोगो की अपनी दृष्टि मे ये सबको उपयुक्त लगी।फलस्वरूप उसका विस्तार होता चला गया। आज संसार की एक तिहाई से ज्यादा जनता साम्य वादी शासन पद्धति को अपना चुकी है और एक तिहाई जनता ऐसी भी है जो उस विचारधारा जो उस विचारधारा से प्रभावित हो चली थी। कोई युद्ध इतनी जनता को इतने कम समय मे इतनी सरलता पूर्वक किसी शासन के अन्तर्गत नही ला सकता था।जितनी इन विचार क्रान्तियो के द्धारा सफलता उपलब्ध कर ली गयी थी।
उपरोक्त तथ्यो पर यदि गम्भीरता पूर्वक विचार किया जाये तो इस निष्कर्ष तक पहुँचना आसान हो जायेगा कि जनमानस को प्रभावित कर वोट के बल से आजादी के बाद काँग्रेस व भाजपा शासन कर रही है। स्वाधीनता प्राप्त करने मे हमारे नेताओं ने जनता के विचार निर्माण से ही विजय पाई थी।
जनमानस बदल जाये तो देश का ही नही किसी भी देश का शासन बदला जा सकता है। जनता के विचार प्रवाह की प्रचण्ड धारा किसी भी शासन को इधर से उधर पलट सकती है। किसी शासन का जिक्र इसलिये किया जा रहा है कि इन पार्टियो को आज सबसे बडी साधन सम्पन्न संस्था समझा जाता है। इतनी बडी केन्द्रित शक्ति हुए भी इनकी सत्ता को उखाडा जा सकता है।क्योकि वास्तविक शक्ति तो इस समय विचार पद्धति की प्रखरता मे ही है।जो इन पार्टियो के पास नही है।भाजपा जिस फण्डामैन्टल विचार (हिन्दू -मुस्लिम)के कारण सत्ता मे आई है। उसका आधार व स्वरूप जैसे जैसे बढता जायेगा देश मे————–इस खाली स्थान को आज देश की स्थिति को देखकर खुद भर लेना।क्योकि मै जानता हूं कि मनुष्य जिस विचार धारा से प्रभावित होगा।वैसी ही परिस्थितियां उस समाज मे विनिर्मित होने लगेगी। समाज मे नफरत, घृणा.एक दूसरे की निन्दा सब उस विचार के स्वरूप के कारण ही है।
आज व्यक्ति व समाज के सम्मुख उपस्थित अंगणित उलझनो, कठिनाईयो का समाधान करने गरीबी बेरोजगारी, असमानता, शोषण को दूर करने की आकांक्षा ,आज भारत मे ही नही पूरे एशिया महाद्वीप की अन्तर आत्मा मे हिलोरे ले रही है।यह आकांक्षा मूर्तरूप कैसे धारण करेगी।(इस विषय पर बाद में लिखूंगा) इस प्रश्न का एक ही उत्तर ही जनमानस की दिशा बदल देने से । विचारो मे वो शक्ति है जिसके आधार पर जनमानस की मान्यताएं, एंव निष्ठाओं मे हेर फेर करके उसकी गतिविधियो व क्रिया पद्धतियो को बदला जा सकता है।
यह परिवर्तन जिस क्रिया से होगा।उसी क्रम मे परिस्थितियां भी बदलेगी।देश निर्माण की मंजिल इसी रास्ते पर चलने से पूरी होगी।इस निष्कर्ष पर पहुंचने मे किसी को कठिनाई नही होनी चाहिये,कि मनुष्य जाति की व्यक्तिगत व सामाजिक वर्तमान कठिनाईयो का कारण उसकी विचारधाराओं के स्तर का गिर जाना ही है। असंयम ने हमारा स्वास्थ्य खोखला कर दिया है। अपराधी मनोवृत्ति ने असुरक्षा व अशान्ति का सृजन किया है।
हीनता ने हमारी प्रगति को रोका है। अविनय ने हमे शत्रुता विरोध असहयोग एंव तिरस्कार का भागी बनाया। असंतुलन ने हमारी मानसिक शक्ति को नष्ट कर दिया है।जिसके कारण समाज का चरित्र व नैतिक पतन हो गया है।व्यवस्थाओं ने उसे कायर भी बना दिया है।
व्यक्ति को जितने कष्टो का सामना आज करना पड रहा है।जितना अभाव व कष्ट सहना पड रहा है।उसका प्रधान कारण व्यक्ति का स्तर गया बीता होना ही है।यदि इसे सुधारा जाये तो निसंदेह हर व्यक्ति सखमान्य साधनो, एंव परिस्थितियो मे स्वर्गीय आनन्द और उल्लास से भरा जीवन जी सकता है।
आज समाज के सामने जो समस्या है।वे भी दुष्प्रवत्तियो की संताने है।आलस्य, संकीर्णता,सामूहिकता का अभाव एवं नागरिक कर्तव्यो की उपेक्षा असमानता जैसे सामाजिक दोष दुर्गणो ने बेरोजगारी की, बेकारी की, गरीबी की, शिक्षा की ,अपराधो की समस्यायें उत्पन्न की है।यदि इस जातीय जीवन मे परस्पर मिलजुल कर एकता व आत्मीयकता के आधार पर काम करने की लगन को स्थान दिया जाये।तो जो साधन व पैसा आज अवाँछनीय कार्यो पर खर्च हो रहा है।उसे ही सार्वजनिक विकास मे प्रयुक्त होते देखेगे।और विपन्नता सम्पन्नता मे बदल जायेगी।
जनता विचार रहित नही है। ना ही मनुष्य विवेक शून्य हुआ है।यदि उसे तथ्य समझाये जाये तो वह समझता भी है मानता भी है।और बदलता भी है।इसलिये उसे वास्तविक चिरस्थायी और उसके सर्वागीण विकास के बारे मे उसे वस्तुस्थिति समझा दी जायै।तो वह उसे मानेगा भी और अपनायेगा भी। विचारो की क्रान्ति का अर्थ है मनुष्य के आस्था स्तर को निकृष्टता से विरत कर उच्चकृष्टता की और अभिमुख करना।
उसे पतन के मार्ग से हटाकर उत्थान के मार्ग पर अग्रसर करना।उसे असत्य के मार्ग से हटाकर सत्य के मार्ग पर लाने की सबसे बडी आवश्यकता है।आज सम्पूर्ण विश्व का मानव इसी के लिये तडप रहा है। क्योकि विश्व की सम्पूर्ण सत्ताए आज मानवता व प्रकृति के विरूद्ध कार्यो मे संलग्न है।वो सिर्फ अपने स्वार्थो के लिये काम कर रही है।ना तो उन्हे देश से मतलब है ना ही देश की जनता से वो तो सिर्फ अपने ऐशोआराम मे ही मग्न रहते है। इसलिये संसार के उज्जवल भविष्य के लिये एवं इस महत्वपूर्ण प्रयोजन की पूर्ति के लिये हर प्रबुद्ध व्यक्ति को सोचना होगा करना होगा।अकर्तव्य भावना से तो हम अपनी आत्मा के सामने कर्तव्यघात के अपराधी ही होंगे।
जिनके जीवन का कोई उद्देश्य नही उसमे और पशुओं मे कोई अन्तर नही। किसी भी सत्ता को उखाडना या हटाना बडी बात नही है बडी बात तो ये है कि उनके स्थान पर नैतिकवान चरित्रवान व संवेदनशील लोगो को बैठाना ।
————————