भाजपा ने किया था गुजरात गौरव यात्रा का आयोजन..

पूर्वी गुजरात में आदिवासी बेल्ट जिसमें 27 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति (एससी) समुदाय के लिए आरक्षित हैं। आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस के प्रभुत्व को कम करने के लिए भाजपा लगातार काम कर रही है लेकिन फिर भी अब तक भाजपा को इस क्षेत्र में जीत हासिल नहीं हुई है।

 पूर्वी गुजरात में आदिवासी बेल्ट, जिसमें 27 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति (एससी) समुदाय के लिए आरक्षित हैं। ये क्षेत्र राज्य का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को अब तक ज्यादा चुनावी सफलता नहीं मिली है क्योंकि कांग्रेस की पकड़ अभी भी यहां बनी हुई है लेकिन अब भाजपा, जो 1995 से लगातार छह विधानसभा चुनाव जीतने के बाद दो दशकों से अधिक समय से राज्य पर शासन कर रही है, को लग रहा है कि अगले महीने होने वाले राज्य चुनावों में वह इन 27 में से कम से कम 20 सीटें जीत सकती है।

वहीं, सत्तारूढ़ दल का कहना है कि इस बार कांग्रेस का चुनाव प्रचार फीका रहा है और आम आदमी पार्टी (AAP) के आने से पुरानी पार्टी के वोट बंट जाएंगे। हालाँकि, कांग्रेस का विचार है कि आदिवासी आबादी इस बार भी उसे वोट देगी क्योंकि उन्हें समुदाय के उत्थान के लिए पूर्ववर्ती पार्टी के नेतृत्व वाली सरकारों द्वारा किए गए काम याद हैं।

गुजरात में दो चरणों में होंगे चुनाव

2011 की जनगणना के अनुसार, गुजरात में आदिवासी आबादी 89.17 लाख थी, जो इसकी कुल आबादी का लगभग 15 प्रतिशत है। समुदाय के सदस्य बड़े पैमाने पर राज्य के 14 पूर्वी जिलों में फैले हुए हैं। आदिवासी आबादी 48 तालुकों में केंद्रित है। 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा के लिए चुनाव अगले महीने दो चरणों में – 1 दिसंबर और 5 दिसंबर को होंगे और मतों की गिनती 8 दिसंबर को होगी।

बीजेपी 2002 से आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस के दबदबे को तोड़ने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है। नई पार्टी में शामिल होने वाली आम आदमी पार्टी भी इस क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ने पर विचार कर रही है।

2017 के चुनावों में इन 27 एसटी-आरक्षित सीटों में से कांग्रेस ने 15, भाजपा ने 8 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि दो सीटों पर छोटू वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) ने जीत हासिल की थी और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने एक सीट जीती थी।

2012 में कांग्रेस ने 16, बीजेपी ने 10 और जनता दल (यूनाइटेड) ने 1 सीट जीती थी। 2007 में, परिसीमन से पहले जब 26 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित थीं, कांग्रेस 14 सीटों पर, भाजपा 11 और जद(यू) एक सीट पर विजयी हुई थी। छोटू वसावा 2012 तक जद (यू) में थे और 2007 और 2012 में जेयू (यू) के टिकट पर जीते और बाद में उन्होंने बीटीपी का गठन किया।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पीएम मोदी की व्यापक पहुंच और AAP के प्रवेश के बावजूद कांग्रेस आदिवासी क्षेत्र में बढ़त बनाए रखने के लिए निश्चित है।

भाजपा पिछले 20 सालों से कर रही मेहनत

राजनीतिक पर्यवेक्षक हरि देसाई ने कहा, राज्य के गठन के बाद से आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस का दबदबा रहा है। यह राज्य के कई अन्य हिस्सों में कमजोर प्रदर्शन के बावजूद आदिवासी क्षेत्रों में एक शक्तिशाली शक्ति बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा गुजरात के आदिवासी इलाकों में कांग्रेस के इस प्रभुत्व को तोड़ने के लिए पिछले 20 वर्षों से कड़ी मेहनत कर रही है, लेकिन वे अब तक सफल नहीं हुए हैं।

देसाई ने कहा, इस बार भी पीएम मोदी और उनकी पार्टी का जनजातीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रचार हुआ है।

उन्होंने कहा, ‘AAP’ के आने से आदिवासी सीटों पर विपक्षी वोट बंट जाएंगे, लेकिन कुल मिलाकर मुझे लगता है कि इस क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी का दबदबा बना रहेगा।

भाजपा ने किया था गुजरात गौरव यात्रा का आयोजन

भाजपा ने हाल ही में राज्य के आदिवासी क्षेत्र में अपनी ‘गुजरात गौरव यात्रा’ के एक चरण का आयोजन किया था।

गुजरात सरकार में आदिवासी विकास मंत्री नरेश पटेल ने पीटीआई से बात करते हुए कहा, इस बार हम 27 में से कम से कम 20 सीटें जीतने जा रहे हैं। आदिवासी अब ज्यादा जागरूक हैं और वे विकास चाहते हैं। पीएम मोदी के काम ने उन्हें आदिवासियों के बीच लोकप्रियता दिलाई है। उन्होंने कहा कि इस बार कांग्रेस का अभियान नीरस रहा है, जो पिछले चुनावों में नहीं था।

पटेल ने कहा, AAP के आने से बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा होगा क्योंकि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी के उम्मीदवार कांग्रेस के वोटों को तोड़ देंगे। यही मुख्य कारण हैं कि उन्हें लगता है कि भाजपा आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस के प्रभुत्व को तोड़ देगी।

कांग्रेस के लिए आदिवासी इलाके में पकड़ बनाना बेहद जरूरी

कांग्रेस के लिए राज्य में आदिवासी इलाकों पर अपनी पकड़ बनाए रखना बेहद जरूरी है। पार्टी ने इस साल मई में राहुल गांधी की एक विशाल रैली का आयोजन किया था। पार्टी ने जेतपुर से अपने आदिवासी विधायक सुखराम रतवा को नेता प्रतिपक्ष का पद भी दिया है।

कांग्रेस प्रवक्ता मनीष दोशी ने कहा, आदिवासी आबादी कांग्रेस को वोट देती है क्योंकि वे हमारे द्वारा उनके लिए किए गए अच्छे कामों को याद करते हैं। हम सिर्फ बीजेपी जैसे बड़े वादे नहीं करते हैं। उन्होंने (BJP) 27 वर्षों तक शासन किया, लेकिन आदिवासी क्षेत्रों का विकास करने में असफल रहे।

उन्होंने कहा, कांग्रेस ने इससे पहले आदिवासी नेता अमरसिंह चौधरी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था। दोशी ने आगे कहा, हमने आदिवासियों को वन भूमि का अधिकार, वन उत्पादों के उपयोग का अधिकार दिया। हमने उनके विकास की परवाह की।

BTP ने AAP के साथ तोड़ा गठबंधन

कांग्रेस चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए छोटू वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी के साथ भी बातचीत कर रही है और उम्मीद कर रही है कि इससे लाभ मिलेगा। वसावा पार्टी ने पिछले 2017 के चुनावों में दो सीटों पर जीत हासिल की है। AAP ने BTP के साथ गठबंधन करके राज्य के आदिवासी इलाके में आधार हासिल करने की कोशिश की। हालांकि, बाद में BTP ने गठबंधन तोड़ दिया और राज्य के आदिवासी इलाके में AAP को ऐसे ही छोड़ दिया।

गुजरात में कांग्रेस कैसे बचा रही अपनी जमीन

गुजरात विधानसभा चुनावों में आदिवासियों के वोटों की सबसे बड़ी दावेदार कांग्रेस पार्टी है। इसका बड़ा कारण उसके पास आदिवासियों के मजबूत नेता के रूप में अनंत पटेल का होना है। पटेल आदिवासी युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं और वे लंबे समय से आदिवासियों के अधिकारों के लिए आंदोलन करते रहे हैं। आदिवासियों का मुद्दा गंभीरता के साथ उठाने के कारण समुदाय के लोगों के बीच उनकी छवि मजबूत बनी हुई है। कांग्रेस को इसका लाभ मिल सकता है।

पार्टी ने गुजरात सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं (केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट, दमन गंगा-पिंजल प्रोजेक्ट, पार-तापी-नर्मदा, गोदावरी-कृष्णा, कृष्णा-पनेर और पनेर-कावेरी प्रोजेक्ट) में आदिवासी समुदाय के लोगों की जमीन छिनने और उन्हें पर्याप्त मुआवजा न मिलने का मुद्दा उठाया है। अनंत पटेल के नेतृत्व में पार्टी ने कई प्रदर्शन किए हैं जिनमें भारी संख्या में लोगों की भागीदारी यह तय करने के लिए काफी है कि इस चुनाव में उनका झुकाव किस ओर हो सकता है। अनंत पटेल पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के गृह क्षेत्र में हुए हमले ने इस मामले को और ज्यादा भड़काने का काम किया है। कांग्रेस को इसका लाभ मिल सकता है।

भाजपा की ताकत हैं द्रौपदी मुर्मु और कल्याणकारी योजनाएं

भाजपा यह बात बखूबी समझ रही है कि यदि आदिवासी मतदाताओं को संभालने का काम नहीं किया गया तो दक्षिण गुजरात के गढ़ में उसका जीतना मुश्किल है। यह उसके विजय का रथ भी रोक सकता है। यही कारण है कि पार्टी इन मतदाताओं को रिझाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है। पार्टी ने अपने अध्यक्ष जेपी नड्डा के नेतृत्व में ‘गुजरात आदिवासी गौरव यात्रा’ निकालकर इन मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है।

भाजपा सरकार के केंद्रीय मंत्रियों, राज्य सरकार के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों की पूरी टीम आदिवासियों के क्षेत्रों में जाकर उन्हें यह याद दिलाने की कोशिश कर रही है कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकार भाजपा ने उन्हें ऐतिहासिक गौरव दिलाने का काम किया है।

भाजपा लगातार आदिवासियों के क्षेत्रों में आवास योजनायें चला रही है, आदिवासी महिलाओं को स्वरोजगार हासिल करने में मदद कर रही है तो वहीं आदिवासी युवाओं को स्थानीय रोजगार उपलब्ध कराने की कोशिश कर उनका जीवन स्तर सुधारने की कोशिश भी कर रही है। पार्टी को उम्मीद है कि इन कल्याणकारी योजनाओं और आदिवासी गौरव के नाम पर वह आदिवासी मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहेगी।

केजरीवाल ने की आदिवासियों के बीच एक नई उम्मीद पैदा

गुजरात की राजनीति के जानकार कृष्ण भाई छावारिया ने बताया कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा ने आदिवासियों के गौरव को आसमान वाली ऊंचाई दी है। विशेषकर समुदाय की महिलाएं भाजपा के पक्ष में मजबूती से जुड़ सकती हैं। उसने महिला केंद्रित योजनाओं के केंद्र में भी आदिवासी महिलाओं को प्राथमिकता देकर इनका दिल जीतने की कोशिश की है। उसे इसका लाभ मिल सकता है, लेकिन गुजरात की जमीनी सच्चाई यह है कि आदिवासी युवाओं में बेरोजगारी अभी भी बहुत ज्यादा है।

चूंकि कांग्रेस आदिवासियों को ज्यादा मुआवजा देने और युवाओं को रोजगार देने का मुद्दा जोरशोर से उठा रही है, उसे इसका लाभ मिल सकता है। भाजपा के पास स्थानीय मजबूत आदिवासी नेतृत्व के न होने का उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि आदिवासी समुदाय अपने हितों की बात अपने समुदाय के नेता की भाषा में ज्यादा अच्छी तरह समझता है, लेकिन इसी बीच आदिवासी समुदाय के वोटरों पर दावेदारी जताने के लिए अरविंद केजरीवाल भी मैदान में हैं और उन्होंने गरीब आदिवासियों के बीच एक नई उम्मीद पैदा की है, कुछ मतदाताओं का रुझान उनकी तरफ भी हो रहा है। यदि वे आदिवासी मतदाताओं के एक हिस्से का भी वोट पाने में सफल रहते हैं तो इससे वोटों का बंटवारा होगा और इस स्थिति में जीत किसी की ओर भी मुड़ सकती है।  

गुजरात में 27 साल से है बीजेपी की सत्ता

गुजरात में पिछले 27 साल से भाजपा सत्ता में है। महाराष्ट्र से 1960 में अलग होकर अस्तित्व में आए गुजरात में साल 1992 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ था। राज्य में तब से लेकर 1995 तक कांग्रेस सत्ता में रही, लेकिन 1995 के चुनाव में जीत हासिल कर बीजेपी सत्ता में आई और अब तक सत्ता में बनी हुई है।

इस बार गुजरात में त्रिकोणीय मुकाबला?

यहां के चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला हो रहा है, लेकिन इस बार विधानसभा चुनावों के लिए आम आदमी पार्टी भी जी तोड़ मेहनत कर रही है। लिहाजा राज्य में इस बार बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। पंजाब की तर्ज पर गुरजात में भी आम आदमी पार्टी जोरशोर से चुनाव प्रचार कर रही है और पंजाब जैसी चुनावी रणनीति यहां भी बना रही है।

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