वाराणसी को एक हाइड्रोजन फ्यूल सैल जलयान और चार इलेक्ट्रिक हाइब्रिड जलयान मिलेंगे…

मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने शुक्रवार को वाराणसी में कई परियोजनों के लोकार्पण- शिलान्‍यास में हिस्‍सा लिया इस दौरान उन्‍होंने बताया कि वाराणसी अयोध्‍या और मथुरा वृंदावन के साथ गुवाहाटी में इलेक्ट्रिक जलयान के शुरुआत की जानकारी साझा की।

जल परिवहन मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि देश की आध्यात्मिक नगरी काशी को सबसे उन्नत हाइड्रोजन फ्यूल सैल कैटमारन जलयान मिलने जा रहे हैं। वाराणसी को एक हाइड्रोजन फ्यूल सैल जलयान और चार इलेक्ट्रिक हाइब्रिड जलयान मिलेंगे। इसके लिए भारतीय अंतरदेशीय जल मार्ग प्राधिकरण और कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड के बीच एमओयू साइन किया गया है।

करार के मुताबिक शून्य उत्सर्जन 100 पैक्स हाइड्रोजन फ्यूल सेल पैसेंजर कैटामारन जलयान का डिजाइन और विकास कोचिन शिपयार्ड केपीआइटी पुणे के सहयोग से करेगी। परीक्षणोपरांत कैटामारन जलयान वाराणसी में गंगा में उतरेगा। इस प्रोजेक्ट की कामयाबी को परखने के बाद इस टेक्नोलाजी से कार्गाे वैसल, स्‍माल कंट्री क्राफ्ट आदि बनाए, अपनाए जाएंगे। इससे राष्ट्रीय जलमार्गों में प्रदूषण का स्तर घटाने में बहुत मदद मिलेगी।

समझौते के तहत कोचिन शिपयार्ड आठ हाइब्रिड इलेक्ट्रिक कैटामारन जलयान बनाएगा। प्रोजेक्ट के लिए केन्द्र सरकार ने 130 करोड़ मंजूर किए हैं। 50 पैक्स क्षमता वाले जलयान वाराणसी, अयोध्या, मथुरा-वृंदावन और गुवाहाटी में चलेंगे। शून्य उत्सर्जन ईंधन सैल पैसेंजर कैटमारन जलयान आने से जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में कमी लाने का मार्ग प्रशस्त होगा।

भारतीय अंतरदेशीय जल मार्ग प्राधिकरण के माध्यम से यह प्रोजेक्ट कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड कोची को दिया गया है। इसने हाल ही में भारत का पहला स्वदेश निर्मित एयर क्राफ्ट कैरियर तैयार किया है।

भारतीय अंतरदेशीय जल मार्ग प्रधिकरण गंगा पर 62 लघु सामुदायिक घाटों का विकास कर रहा है। इनमें 15 यूपी में 21 बिहार, तीन झारखंड और 23 पश्चिम बंगाल में हैं। उत्तर प्रदेश में वाराणसी-बलिया के बीच 250 किलोमीटर में घाट विकसित किए जा रहे हैं। ये घाट यात्री एवं प्रशासनिक सुविधा युक्त होंगे।इनसे नदी के जरिए माल ढुलाई और आवागम संभव होगा। समय बचेगा। लागत घटेगी। छोटे उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। क्षेत्रीय सांस्कृतिक विरासत को विस्तार मिलेगा। अंतरदेशीय जलमार्गों के विकास से विकास एवं परिचालन के मानकीकरण में मदद मिलेगी। स्थानीय समुदायों को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। आजीविका में भी सुधार होगा।

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