अरब में योग की झंडाबरदार “नॉफ अल मरवाही”

डॉ धीरज फूलमती सिंह वरिष्ठ स्तंभकार

साल 2021 नवंबर में एक से एक कद्दावर शख्सियतों को राष्ट्रपती भवन में भारत के राष्ट्रपती द्वारा पद्म पुरस्कार प्रदान किये गए। कई हस्तियां जमीन से जुडी थी, तो कई आसमान की बुलंदियों को छू रही थी। ऐसे में मुझे सबसे ज्यादा अगर किसी हस्ती ने आकर्षित किया तो वो है…नॉफ अल मरवाही!
इस साल पद्म पुरस्कार पाने वालो में कोई संतरे बेच कर स्कूल खोल रहा है,कोई तीस हजार पेड लगाया है,किसी ने पचीस हजार मृतको का अंतिम संस्कार किया,तो किसी ने सिनेमा में बेहतरीन योगदान दिया है। देखा जाए तो इस सबका समाज के प्रति योगदान अनुकरणीय है,महत्वपूर्ण है, काबिल ए तारीफ है लेकिन ऐसे कार्य करते हुए समाज मे बहुत से लोग मिल जाएगे लेकिन धारा के विपरीत संघर्ष करके मिसाल कायम करने वाली शख्सियत बहुत कम मिलती है।

 

नॉफ अल मरवाही जी एक महिला है,जो सऊदी अरब की पहली योग गुरू है। सऊदी अरब यह वही देश है,जहा सरीया कानून लागू है,महिलाओ को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है,उन्हे बराबरी का दर्जा प्राप्त नही है। यह जरूर है कि आजाद हवा में सास लेने के लिए आज कल सऊदी अरब भी इस्लाम धर्म के दकियानूस कठोर सरीया कानून की बेडियों के कडियों को धीरे- धीरे खोलता जा रहा है। अब सऊदी अरब के नागरिको को भी लोकतंत्र की हवा लग रही है,उन्हे भी खुली हवा में सांस लेने में सूकून महसूस हो रहा है। खास कर महिलाओ को आजाद होती फीजा में खुल सास लेना भा रहा है।
नॉफ अल मरवाही जब पैदा हुई थी तो उनके शरीर में प्रतिरोध क्षमता नगण्य थी, शारीरिक प्रतिरोध क्षमता का क्या और कितना महत्व है,आज शायद ही किसी को बताने की जरूरत है ? कोरोना वायरस ने इसके महत्व को अच्छी तरह समझा दिया है। इस वजह से नॉफ अल मरवाही बचपन में हमेशा बिमार रहती थी,बहुत से डॉक्टरो को दिखाया गया लेकिन सब ने हाथ खडे कर दिये,कोई उनका इलाज करने को ही तैयार नही था। किसी उन्हे सलाह दी कि भारत जा कर वे अपना इलाज करवाएं,योग और आयुर्वेद में बहुत संभावना है।

 

अंधेरी गुफा में हाथ पैर मारते नॉफ अल मरवाई के परिवार को सुदूर गुफा के दूसरे छोर भारत में आशा की एक मसाल जलती दिखाई दी,वे अपने पिता के संग इलाज कराने भारत आ गई। जैसे कोई चमत्कार हुआ,कुछ महीने के योग और आयुर्वेद के इलाज के बाद वे पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गई लेकर वे यही नही रूकी, उन्होने फैसला कर लिया की योग का अपने देश में प्रचार प्रसार करेगी, इसके फायदे से अपने देश वासियो को रूबरू करवाएगी!

 

नॉफ अल मरवही पिछले 20 साल से सऊदी अरब में योग की अलख जगा रही है,20 साल के अथक प्रयास के बाद उन्होने से साबित कर दिया कि इस जहान में कुछ भी नामुमकिन नही है,हर चीज हासिल की जा सकती है। वे सऊदी अरब की पहली योग गुरू है। उनके अथक प्रयास का ही फल है कि सऊदी अरब ने पांच साल पहले योग को अपने देश में मान्यता दे दी है,भले ही इस मुल्क में फिलहाल योग को खेल के तौर पर ही मान्यता मिली है लेकिन शुरुआत तो हुई। नॉफ अल मरवाई इसके लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी जी का शुक्रिया अदा करते हुए कहती है कि भारत सरकार ने 21 जून को संयुक्त राष्ट्र संघ में विश्व योग दिवस की पहल की और उन्होने इसे मान्यता दे दी,मोदी जी के आग्रह पर इसके बाद सऊदी अरब ने भी मंजूरी दे दी।

 

नॉफ अल मरवाही में लडने की यह प्रवृति शायद अपने पिता मोहम्मद मरवाही से विरासत में मिली है। उनके पिता भी सऊदी अरब के पहले मार्शल आर्ट्स शिक्षक और खिलाडी थे,वे एक बेहतरीन एथलीट भी थे,सऊदी अरब में मार्शल आर्ट्स को स्थापित करने में उन्हे भी काफी मशक्कत करनी पडी थी,सऊदी अरब की सत्ता तो उनके विरोध में उनको नाको चने चबाने पर आमादा थी,उनकी पहल का पुरजोर विरोध हुआ मगर उन्होने भी हिम्मत नही हारी और 45 साल पहले सऊदी अरब में मार्शल आर्ट्स को एक नाम,एक मुकाम देने मे आखिर वे कामयाब हो गए शायद यही गूर उनकी बेटी में भी जन्म जात है और उनकी बेटी ने भी कठोर संघर्ष के बाद सऊदी अरब में योग को भी एक नाम,एक मुकाम देने में कामयाबी हासिल की!

 

सिर्फ पिछले पांच सालों में ही आज सऊदी अरब में 40 पार के 60% महिला-पुरूष रोज योग करते है। वे ॐ के उच्चारण के साथ ध्यान करते है! ॐ के उच्चारण के साथ ही सूर्य नमस्कार भी करते है। जिस इस्लाम धर्म की बंदिशो का हवाला देकर भारत में योग का विरोध होता है,उसी इस्लाम धर्म के सबसे कट्टर समर्थक आज सऊदी अरब में बेझिझक योग को दैन दिन की शारीरिक जरूरत के हिसाब से अपनाया जा रहा है। गौरतलब है कि इस्लाम धर्म की सबसे पहले नीव सऊदी अरब में ही पडी थी मगर योग करने से अधिकांश अरबी व्यक्तियों को कोई समस्या नही है। उनका कोई विरोध नही है।

 

यह बात किसी से छुपी नही है कि इस्लाम धर्म की मान्यताओ को मानने वाला सऊदी अरब कितना रूढी वादी देश है लेकिन आज इसका समाज धीरे धीरे अपनी रूढिवादी मान्यताओ से परहेज कर रहा है। जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को विश्व योग दिवस के तौर पर मान्यता दी थी तो भारत सहित यूरोप के कई मुस्लिम संगठनो ने इसका विरोध किया था,ऐसे समय नॉफ अल मरवाही ने भारत सरकार के साथ डट कर खडी रही,अपने धर्म की दकियानूसी मान्यताओ का खूल कर विरोध करती रही और इस का फल मिला कि सऊदी अरब ने भी योग को अपने मुल्क में मान्यता दे दी। महिलाओ को दोयम दर्जे का नागरिक मानने वाले उसी रूढिवादी कट्टर इस्लामिक मुल्क सऊदी अरब में 1250 से ज्यादा योग प्रशिक्षण केद्र खूल चुके है और पुरुष योग गरूओ के साथ तकरीबन 62 महिला योग गुरू लोगो को योग सिखाती है।

 

एक बात की खुशी है कि धार्मिक कट्टरवाद की बेडियों को तोड कर सऊदी अरब के लोग भी धीमे धीरे ही आजादी की बयार को महसूस कर रहे है। आधुनिक युग के साथ कदम ताल करने की कोशिश तो कर रहे है और अमेरिका,ब्रिटेन के बाद सऊदी अरब की फिजा को बदलने का काफी हद तक दारोमदार भारत का भी है। मुझे अपने मुल्क पर नाज है। साथ ही नॉफ अल मरवाही जैसी नारी शक्ति को नमन!