गोरखपुर क्लब के पट्टे की अवधि मार्च 2025 में खत्म हो रही है। 1887 को गोरखपुर क्लब की लीज डीड तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत के पदाधिकारियों ने की थी। अंतिम बार क्लब के लीज को 1999 में बढ़ाया गया था। तत्कालीन सचिव सुरेश सिंह ने बताया कि 1999 में गोरखपुर क्लब की लीज उन्होंने ही बढ़वाई थी। इस लीज की अवधि 2025 मार्च को खत्म हो जाएगी।
गोरखपुर क्लब परिसर में खुलेआम शराब परोसी जा रही थी। जिस परिसर में शराब परोसी जा रही थी, वह रेस्टोरेंट की है। आबकारी विभाग ने गोपनीय सूचना के आधार पर बीते बृहस्पतिवार को दोपहर छापा मारकर क्लब के अंदर दूसरे किसी बार के संचालन पर सख्ती से रोक लगा दी।
सूत्रों ने बताया कि यह बार भी क्लब के सदस्यों के लिए ही बताकर संचालित किया जा रहा था, ऐसे में एक परिसर में दो बार काउंटर पर रोक लगाकर आबकारी टीम के सदस्य चले गए।
दरअसल, गोरखपुर क्लब के पट्टे की अवधि मार्च 2025 में खत्म हो रही है। 1887 को गोरखपुर क्लब की लीज डीड तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत के पदाधिकारियों ने की थी। अंतिम बार क्लब के लीज को 1999 में बढ़ाया गया था। तत्कालीन सचिव सुरेश सिंह ने बताया कि 1999 में गोरखपुर क्लब की लीज उन्होंने ही बढ़वाई थी। इस लीज की अवधि 2025 मार्च को खत्म हो जाएगी।
एक तरफ गोरखपुर क्लब की लीज अवधि बढ़ी नहीं और परिसर में ही दूसरा नया ओपन बार संचालित होने लगा। आबकारी विभाग के सूत्रों ने बताया कि विभाग ने इस नए बार के संचालन पर रोक लगा दी है।
लीज के नियमों का पालन नहीं करते क्लब
कलक्ट्रेट में चर्चा है कि शहर के सभी क्लब लीज डीड की शर्तों का पालन नहीं करते हैं। नियम के विरुद्ध क्लब के लीज डीड परिसर का ये व्यावसायिक उपयोग करने लगते हैं। इससे होने वाला आर्थिक लाभ वे खुद रखते हैं, न कि क्लब या जिला प्रशासन के खाते में जाता है। सीएम योगी ने भी सरकारी जमीनों का ऐसे निजी लाभ लेने वालों पर सख्ती से कार्रवाई करने के लिए नजूल नीति को लागू किया है।
बार लाइसेंस को बढ़ाने के लिए खिंच चुकी थी तलवार
गोरखपुर क्लब का लीज कंपनी एक्ट में हुआ है। कंपनी एक्ट में चेयरपर्सन और सदस्य होते हैं। कंपनी एक्ट में कोई भी सरकारी अधिकारी या राज्य संपत्ति अधिकारी चेयरपर्सन या सदस्य नहीं बन सकता। इसमें डीएम को सिर्फ अध्यक्ष पद पर आमंत्रित कर पदेन किया जाता है।
कोरोना काल के पहले इसी बार के लाइसेंस के नवीनीकरण को लेकर सोसाइटी और अधिकारियों के बीच ठन गई थी। इसके रिकाॅर्ड अभिलेखों में भी दर्ज हैं। तत्कालीन समय अधिकारी खुद को क्लब के जिम्मेदार के तौर पर स्थापित कर रहे थे।
तब क्लब की तरफ से लिखित में बताया गया था कि क्लब एक निजी कंपनी है और सरकारी अधिकारी इस क्लब का सदस्य बनेगा तो इसे कंपनी के शेयर होल्डर के तौर पर जुड़ना होगा। इसके बाद मामला, बार के लाइसेंस की समयावधि बढ़ाकर खत्म किया गया।
निपाल लॉज पर भी संकट, कर रहे इंतजार
निपाल लॉज की लीज छह फरवरी 1941 को लॉज निपाल 38 के नाम से तत्कालीन डीएम ने की थी। अधिसूचित क्षेत्र का पट्टा 1903 में शुरू हुआ था। 30 वर्ष के अंतराल पर लीज की समयावधि बढ़ाई जानी थी।
ऐसे में 58 वर्ष पूरा होने पर 1999 में फिर से 30 वर्ष के लिए निपाल लॉज की लीज डीड बढ़ाए जाने का आवेदन तत्कालीन पदाधिकारियों ने डीएम से किया था, लेकिन इस बार डीड पहले 20 वर्ष फिर 10 वर्ष तक बढ़ाए जाने की शर्त रख दी गई। लॉज निपाल क्लब के तत्कालीन पदाधिकारियों ने 2019 में तत्कालीन डीएम के विजयेंद्र पांडियन के पास आवेदन कर समय बढ़ाने का अनुरोध किया था। तभी से अब तक लंबित है।
जिला आबकारी अधिकारी महेंद्र नाथ सिंह ने बताया कि संचालक को नियमों की जानकारी नहीं थी। आबकारी विभाग की टीम ने जाकर नियमानुसार संचालन और अन्य बारीकियां समझा दी हैं। आने वाले समय में वहां शराब या आबकारी से जुड़े किसी पेय पदार्थ का संचालन नहीं हो, इस सख्ती के साथ उन्हें निर्देशित किया गया है।
1888 रेस्ट्रो व बार संचालक रक्ष ढींगरा ने बताया कि हमारी तरफ से किसी तरह का गलत संचालन नहीं किया जा रहा था। क्लब के सदस्यों के लिए ही सिर्फ खुले में रेस्टो और बार संचालित किया जा रहा था। क्लब के सदस्यों के लिए ही अलग से बनाए बार में भी सुविधा थी। ये बाहरी लोगों के लिए नहीं था।