उत्पन्ना एकादशी के दिन माता एकादशी और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। जानिए इस दिन किन मंत्रों का करें जाप
हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु की पूजा को सबसे फलदायी माना जाता है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में भगवान विष्णु की पूजा निश्चित रूप से की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान विष्णु की पूजा के लिए एकादशी तिथि का दिन सबसे उत्तम है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर मास में दो एकादशी के व्रत रखे जाते है। जिसमें पहला कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में पड़ता है। अगहन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखा जाता है। इस एकादशी को कन्या एकादशी और उत्पत्ति एकादशी के नाम भी जानते हैं। उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने के साथ-साथ इन मंत्रों का जाप करें। माना जाता है कि इन मंत्रों का जाप करने से श्री हरि विष्णु जल्द होंगे। इसके साथ ही सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देंगे।
उत्पन्ना एकादशी के दिन करें इन मंत्रों का जाप
विष्णु मूल मंत्र
ॐ नमोः नारायणाय॥
सुख-समृद्धि का विशेष मंत्र
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
भगवते वासुदेवाय मंत्र
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥
विष्णु गायत्री मंत्र
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
श्री विष्णु मंत्र
मंगलम भगवान विष्णुः, मंगलम गरुणध्वजः।
मंगलम पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः॥
विष्णु के पंचरूप मंत्र
ॐ अं वासुदेवाय नम:
ॐ आं संकर्षणाय नम:
ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
ॐ नारायणाय नम:
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
लक्ष्मी विनायक मंत्र
दन्ताभये चक्र दरो दधानं,
कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया
लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
विष्णु स्तुति
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥