चाणक्य नीति को ज्ञान का सागर कहा जाता है। इसमें बताई गई नीतियों का पालन कर व्यक्ति जीवन में आने वाली बाधाओं को आसानी से पार कर सकता है। इसी प्रकार सन्तान को कैसा होना चाहिए आचार्य जी ने इस विषय में भी बताया है।
चाणक्य नीति को पढ़ने से जीवन में कई प्रकार के सकारात्मक बदलाव आते हैं। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति से जीवन के कई रहस्यों से पर्दा उठाया है। एक शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों के माध्यम से अनगिनत युवाओं को सही राह दिखाने का कार्य किया है। बता दें कि आचार्य न केवल राजनीति, कूटनीति और रणनीति में निपुण थे, बल्कि उन्हें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का ज्ञान था। जिसे उन्होंने चाणक्य नीति में बताया सम्मिलित किया था। उन्होंने यह भी बताया है कि एक संतान को कैसा होना चाहिए और किस तरह वह अपने परिवार का नाम ऊंचा कर सकता है। आइए जानते हैं-
वरमेको गुणी पुत्रो निर्ग्रणैश्च शतैरपि।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च ताराः सहस्त्रशः।।
आचार्य चाणक्य ने इस नीति में यह बताया है कि सैकड़ों मूर्ख पुत्रों की तुलना में केवल एक विद्वान पुत्र से ही परिवार का कल्याण हो जाता है और कुल का मान-सम्मान बढ़ जाता है। ठीक उसी तरह जिस प्रकार रात को अनगिनत तारे आकाश में दिखाई तो देते हैं, मगर अंधकार मिटाने में असफल होते हैं। लेकिन उसी आकाश में एक चांद ही पृथ्वी पर अंधकार दूर कर देता है। इसलिए सन्तान को हमेशा विद्या अर्जन करना चाहिए और कुल का नाम उंचा करना चाहिए।
मूर्खश्चिरायुर्जातोऽपि तस्माज्जातमृतो वरः।
मृतः स चाऽल्पदुःखाय यावज्जीवं जडो दहेत्।।
चाणक्य नीति के इस श्लोक में बताया गया है कि लंबी उम्र वाले मूर्ख पुत्र की अपेक्षा में पैदा होते ही मर जाने वाला पुत्र अच्छा है। ऐसा इसलिए क्योंकि अल्प आयु में चले जाने वाले पुत्र का दुःख कुछ समय तक ही रहता है, लेकिन लम्बे समय जीने वाला मूर्ख पुत्र आजीवन दुःख देता है। इसलिए सन्तान को हमेशा गुणी और विद्वान होना चाहिए। इससे न केवल सुख-समृद्धि आती है, बल्कि कुल का नाम भी ऊंचा होता है।