यहां पढ़े? कितने सालो के बाद होगा CWC का चुनाव

कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी यानी CWC के चुनाव का भी ऐलान कर दिया है। CWC का चुनाव 75 साल में तीसरी बार और सोनिया गांधी की 24 साल की लीडरशिप में पहली बार होगा।

 कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी, यानी CWC के चुनाव का भी ऐलान कर दिया है। CWC का चुनाव 75 साल में तीसरी बार और सोनिया गांधी की 24 साल की लीडरशिप में पहली बार होगा।

कांग्रेस सेंट्रल इलेक्शन अथारिटी के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री ने कहा कि CWC के 23 में से 12 सदस्य चुने जाएंगे। इनमें से 11 को नामिनेट किया जाएगा। अगर CWC की चुनी जाने वाली सीटों पर 12 से ज्यादा उम्मीदवार होते हैं, तो चुनाव कराए जाएंगे।

कांग्रेस के मौजूदा हालात पर पार्टी की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले पार्टी नेताओं का ग्रुप 23 भी CWC की 12 सीटों पर भी चुनाव कराने की मांग करता रहा है। माना जा रहा है कि पूर्व कांग्रेसी नेता गुलाब नबी आजाद की बगावत और कपिल सिब्बल और अश्विनी कुमार जैसे नेताओं दबाव के बाद कांग्रेस CWC का चुनाव कराने पर मजबूर हुई है।

कांग्रेस कार्य समिति (CWC) क्या है?

कार्य समिति कांग्रेस की “उच्चतम कार्यकारी प्राधिकरण” है, और पार्टी के संविधान के प्रावधानों की व्याख्या और लागू करने में अंतिम अधिकार है।

कांग्रेस के संविधान के अनुसार, सीडब्ल्यूसी में पार्टी के अध्यक्ष, संसद में उसके नेता और 23 अन्य सदस्य शामिल होंगे, जिनमें से 12 अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी, पार्टी की केंद्रीय निर्णय लेने वाली विधानसभा) द्वारा चुने जाएंगे और बाकी की नियुक्ति पार्टी अध्यक्ष द्वारा की जाएगी।

सीडब्ल्यूसी के पास तकनीकी रूप से पार्टी अध्यक्ष को हटाने या नियुक्त करने की शक्ति है।

सीडब्ल्यूसी को आम तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव या फिर से चुने जाने के बाद पुनर्गठित किया जाता है। सीडब्ल्यूसी का पुनर्गठन एआईसीसी के पूर्ण सत्र के दौरान किया जा सकता है जो चुनाव या फिर से चुनाव के बाद होता है, या राष्ट्रपति द्वारा इसे पुनर्गठित करने के लिए सत्र द्वारा अधिकृत किए जाने के बाद।

सीडब्ल्यूसी का पिछला चुनाव कब हुआ था?

पिछले 50 वर्षों में वास्तविक चुनाव केवल दो बार हुए हैं। दोनों ही मौकों पर नेहरू-गांधी परिवार से बाहर का एक शख्स सत्ता में था।

1992 में, तिरुपति में एआईसीसी के पूर्ण सत्र में, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पी वी नरसिम्हा राव ने सीडब्ल्यूसी के लिए चुनाव कराया, इस उम्मीद में कि उनके चुने हुए लोग जीतेंगे। अपने विरोधियों के बाद – सबसे महत्वपूर्ण अर्जुन सिंह, लेकिन शरद पवार और राजेश पायलट भी चुने गए, राव ने पूरे सीडब्ल्यूसी को यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि कोई भी एससी, एसटी या महिला निर्वाचित नहीं हुई है। इसके बाद उन्होंने सीडब्ल्यूसी का पुनर्गठन किया और सिंह और पवार को नामांकित श्रेणी में शामिल किया।

सीडब्ल्यूसी के चुनाव 1997 में सीताराम केसरी के तहत कलकत्ता पूर्ण में फिर से हुए। पार्टी नेताओं को याद है कि मतगणना अगले दिन तक चली। विजेताओं में अहमद पटेल, जितेंद्र प्रसाद, माधव राव सिंधिया, तारिक अनवर, प्रणब मुखर्जी, आर के धवन, अर्जुन सिंह, गुलाम नबी आजाद, शरद पवार और कोटला विजया भास्कर रेड्डी थे।

इससे पहले, 1969 के बॉम्बे प्लेनरी में, कांग्रेस में कमजोर पड़ने वाले विभाजन के बाद, अंतिम समय में एक चुनाव को टाल दिया गया था, जब मूल यंग तुर्क, चंद्र शेखर को 10 “सर्वसम्मति से निर्वाचित” उम्मीदवारों में शामिल किया गया था।

अप्रैल 1998 में सोनिया के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद, सीडब्ल्यूसी के सदस्यों को हमेशा नामित किया जाता था, क्योंकि उन्होंने संरक्षण की संस्कृति को बढ़ावा दिया था।

ऐसे में आज के एक्सप्लेनर में जानेंगे कि क्या है CWC, आखिर यह कितनी पावरफुल बाडी है, इसके सदस्यों को कौन चुनता है, 9 सवालों में पूरी स्टोरी…

क्या है CWC और कैसा है कांग्रेस का संगठन ?

CWC को जानने से पहले कांग्रेस के संगठन को जानना बेहद जरूरी है। मोटे तौर पर कांग्रेस का संगठन 5 स्तरीय है-

आल इंडिया कांग्रेस कमेटी यानी AICC

2. कांग्रेस वर्किंग कमेटी यानी CWC

3. प्रदेश कांग्रेस कमेटी यानी PCC

4. डिस्ट्रिक्ट/सिटी कांग्रेस कमेटी

5. ब्लाक कमेटी

इसमें वर्किंग कमेटी यानी CWC टाप एग्जीक्यूटिव बाडी है। इसका गठन दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर सेशन के दौरान किया गया था। इसकी अध्यक्षता सी विजयराघवाचार्य ने की थी। पार्टी के संविधान के नियमों की व्याख्या और लागू करने का अंतिम अधिकार CWC के पास ही है।

CWC में 25 सदस्य होते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष CWC का भी प्रमुख होता है। इसके अलावा कांग्रेस संसदीय दल का प्रमुख CWC का दूसरा पदेन सदस्य होता है। बची हुई 23 सीटों में 12 का चुनाव AICC के सदस्य करते हैं और बाकी 11 को कांग्रेस अध्यक्ष नामिनेट करते हैं।

क्या CWC के पास ही होती है कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव कराने की जिम्मेदारी?

हां, CWC कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा करती है। चुनाव कराने के लिए CWC केंद्रीय चुनाव अथॉरिटी बनाती है। यह चुनाव आयोग की तरह एक इंटर्नल बॉडी है। यही बॉडी चुनाव की तारीख, नामांकन की तारीख, नाम वापसी की तारीख और प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करती है। इस अथॉरिटी में 3 से 5 सदस्य होते हैं। फिलहाल कांग्रेस नेता मधुसूदन मिस्त्री इसके चेयरमैन हैं।

CWC को आमतौर पर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव या उसके बाद रीऑर्गेनाइज किया जाता है। CWC को AICC के प्लेनरी सेशन के दौरान रीऑर्गेनाइज किया जा सकता है या अध्यक्ष इसके लिए सत्र बुला सकता है।

CWC कितनी पावरफुल होती है?

CWC के पास अलग-अलग वक्त पर पार्टी में अलग तरह की पावर रही है। 1947 में आजादी से पहले CWC सत्ता का केंद्र थी। साथ ही कार्यकारी अध्यक्ष कांग्रेस अध्यक्ष की तुलना में ज्यादा सक्रिय थे।

1967 के बाद जब कांग्रेस दो भागों में बंट गई थी, तब CWC की पावर पहले जैसी नहीं रह गई थी। 1971 में इंदिरा गांधी की जीत से राज्यों के क्षत्रप कमजोर हुए और एक बार फिर से CWC सबसे बड़ी डिसीजन मेकिंग बॉडी बन गई।

कब हुआ था CWC का पिछला चुनाव?

75 सालों में सिर्फ 2 बार ही CWC का चुनाव हुआ है। इन दोनों ही मौकों पर नेहरू-गांधी परिवार से बाहर का शख्स सत्ता में था।

1992 में AICC का प्लेनरी सेशन तिरुपति में हुआ था। उस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष रहे पीवी नरसिम्हा राव ने CWC के इलेक्शन भी कराए थे। उन्हें उम्मीद थी कि चुनाव में उनके लोग जीत जाएंगे। इलेक्शन के बाद अर्जुन सिंह, शरद पवार और राजेश पायलट जैसे उनके विरोधी भी जीत गए।

इसके बाद नरसिम्हा राव ने कहा कि इस कमेटी में कोई SC, ST या महिला नहीं है। उन्होंने सारे सदस्यों को बर्खास्त कर दिया। राव ने बाद में CWC का पुनर्गठन किया। इसमें अर्जुन सिंह और शरद पवार को नॉमिनेटेड कैटेगरी में शामिल किया।

दूसरी बार CWC का चुनाव 1997 में कलकत्ता (अब कोलकाता) के प्लेनरी सेशन के दौरान सीताराम केसरी की अध्यक्षता में कराया गया था। इस इलेक्शन की काउंटिंग एक दिन बाद भी जारी रही थी। इस इलेक्शन में अहमद पटेल, जितेंद्र प्रसाद, माधव राव सिंधिया, तारिक अनवर, प्रणब मुखर्जी, आरके धवन, अर्जुन सिंह, गुलाम नबी आजाद, शरद पवार और कोटला विजया भास्कर रेड्‌डी ने जीत हासिल की।

इससे पहले 1969 के बॉम्बे प्लेनरी सेशन में कांग्रेस में विभाजन होने के बाद अंतिम वक्त में CWC चुनाव को टाल दिया गया था। इस दौरान चंद्रशेखर समेत 10 लोगों को सर्वसम्मति से सदस्य बनाया गया था।

पिछली बार कब और कैसे CWC में बदलाव किया गया था?

सितंबर 2010 में सोनिया गांधी फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनी थीं। अगले साल मार्च 2011 CWC को रीऑर्गनाइज किया गया। इस दौरान कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन अर्जुन सिंह और मोहसिना किदवई को CWC से हटाकर आमंत्रित सदस्य बना दिया गया था।

CWC में उस दौरान मनमोहन सिंह, एके एंटनी, राहुल गांधी, मोतीलाल वोरा, गुलाम नबी आजाद, दिग्विजय सिंह, जर्नादन द्विवेदी, ऑस्कर फर्नांडिस, मुकुल वासनिक, बीके हरिप्रसाद, बीरेंद्र सिंह, धनीराम शांडिल्य, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, हेमू प्रोवा सैकिया और सुशीला तिरिया सदस्य थे। इस दौरान 5 पद खाली थे।

दिसंबर 2017 में राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने थे। इस दौरान AICC ने राहुल को CWC को रीऑर्गेनाइज करने का अधिकार दिया। मार्च 2018 में CWC को रीऑर्गेनाइज किया गया।

देखा जाए तो अभी तक सभी कांग्रेस अध्यक्षों ने अपने लोगों को CWC का सदस्य बनाया है। इसका पता पार्टी के संविधान से ही चल जाता है। जिसमें सीधे-सीधे कहा गया है कि 25 सदस्यों में से सिर्फ 12 ही चुने जाएंगे, ताकि अध्यक्ष का प्रभाव हमेशा बना रहे।

यदि चुनाव नहीं होते हैं, तो CWC के सदस्यों को किस आधार पर चुना जाता है?

CWC का चुनाव नहीं होने पर अध्यक्ष के प्रति वफादारी के साथ ही क्षेत्रीय, जाति और संगठनात्मक यानी ऑर्गेनाइजेशनल बैलेंस को तवज्जो दी जाती है। इसमें जेंडर बैलेंस की हमेशा अनदेखी की जाती है। साथ ही बैलेंस बनाने के लिए राज्य में प्रमुख नेताओं के विरोधियों को इसमें जगह दी जाती है। इसमें मास अपील और पैसे की ताकत को कम ही तवज्जो मिली है। कई लोकप्रिय और करिश्माई नेता जैसे वाईएस राजशेखर रेड्डी जैसे लोग कभी CWC में नहीं रहे हैं।

2017 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने AICC सेशन के 4 महीने बाद CWC पर फैसला लिया था। इस दौरान उन्होंने पुराने चेहरों की जगह CWC में युवा चेहरों को तवज्जो दी। वे पार्टी सेक्रेटेरिएट में युवा चेहरों को लेकर आए।

इस दौरान गौरव गोगोई, आरपीएन सिंह, जितेंद्र सिंह और राजीव सातव को पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा और गुजरात जैसे प्रमुख राज्यों का प्रभारी बनाया गया। महासचिवों या प्रभारी की सहायता के लिए कई पूर्व युवा कांग्रेस नेताओं को सचिव के रूप में पार्टी में शामिल किया गया।

क्या 83 साल पहले CWC की वजह से ही अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने के बाद भी बोस को इस्तीफा देना पड़ा था?

29 जनवरी 1939 को कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में सुभाष चंद्र बोस ने पट्टाभि सीतारमैया को हराया था। रमैया महात्मा गांधी के उम्मीदवार थे। सुभाष को 1580 वोट और रमैया को 1377 वोट मिले। गांधीजी और सरदार पटेल पूरा जोर लगाने के बाद भी रमैया को जीत नहीं दिला सके।

बोस की जीत पर गांधी ने कहा था कि रमैया की हार मेरी हार है। इसका नतीजा यह हुआ कि CWC के सभी सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। CWC के सदस्य बोस के साथ काम करने को तैयार नहीं थे। मजबूर होकर सुभाष चंद्र बोस ने भी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

उस दौर में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए वैसे नेता भी चुने जा सकते थे, जिन्हें पार्टी के सर्वोच्च नेता का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता था। उस समय गांधी जी पार्टी के सर्वोच्च नेता थे। यह और बात है कि चुने जाने के बाद वे उस पद पर रह नहीं पाते थे।

क्या BJP में भी है CWC जैसी कोई बाडी?

कांग्रेस की तरह ही BJP में सबसे बड़ी डिसीजन मेकिंग बॉडी है। इसे पार्लियामेंट्री बोर्ड कहते हैं। इसमें 11 मेंबर होते हैं। इन सभी को BJP अध्यक्ष चुनते हैं। CWC के विपरीत जब भी BJP को राज्य में हुए चुनावों के बाद मुख्यमंत्री के बारे में फैसला करना होता है, तो पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक होती है।

2013 में BJP की पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में ही नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने का फैसला किया गया था। CWC की तरह पार्लियामेंट्री बोर्ड भी एक पॉलिसी मेकिंग बॉडी है। हालांकि, CWC की तरह पार्लियामेंट्री बोर्ड में पार्टी की नीतियों पर शायद ही कभी चर्चा हुई हो, खासकर 2014 में BJP के सत्ता में आने के बाद से

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