देश में बढ़ते अपराध बता रहे हैं कि वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था सामाजिक नैतिकता के स्तर को बनाए रखने में सफल नहीं हो पा रही। ऐसे में हमें महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए हमें समाज को पुरातनपंथी सोच से प्रगतिशील मानसिकता की ओर ले जाना चाहिए।
दिल्ली का श्रद्धा हत्याकांड हमारे सामने कई प्रश्न खड़े कर रहा है। किसी भी समाज में जघन्य अपराधों का बढ़ना नैतिक मूल्यों के पतन को इंगित करता है। महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध रेखांकित कर रहे हैं कि वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था सामाजिक नैतिकता के स्तर को बनाए रखने में सफल नहीं हो पा रही है। किसी भी देश एवं समाज के लिए स्कूली शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य बेहतर संवेदनशील नागरिकों का निर्माण होता है, न कि मशीनी मानव का निर्माण। सर्वमान्य धारणा है कि समाज में नैतिकता का स्तर जितना उच्च होता है, अपराध की गंभीरता उतनी ही कम होती है।
ये है महिलाओं के खिलाफ अपराध का कारण!
महिलाओं के खिलाफ अपराध का बड़ा कारण विकृत सामाजिक मानसिकता है, जो पुरुषों के मर्द एवं महिलाओं के कमतर होने की धारणा पर आधारित है। आजादी के 75 वर्षों (75 Years of Independence) के बाद भी आज हम महिलाओं के लिए समानता एवं स्वतंत्रता जैसे बुनियादी मुद्दों से जूझ रहे हैं। अधिकांश मसलों में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में निम्न एवं परंपरावादी भूमिकाओं में ही देखा जा रहा है।
क्या महिला सिर्फ भौतिक सुख देने वाली मशीन?
समय के साथ सामाजिक नैतिकता एवं सामाजिक संबंधों का भी ह्रास हुआ है। परिणामस्वरूप महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध बढ़े हैं, क्योंकि पुरातनपंथी सोच का जब भौतिकतावादी संस्कृति से मेल होता है तो पुरातनपंथी-भौतिकतावादी मनुष्य का निर्माण होता है। ऐसे व्यक्ति के लिए एक महिला भौतिक सुख देने वाली मशीन की तरह होती है, जिसका वह जब चाहे उपभोग करना चाहता है। इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि कोई बच्चा जो पुरुषप्रधान समाज में पैदा हुआ है, दुर्भाग्य से स्कूली शिक्षा में भी उसका व्यावहारिक अनुभव पुरुष प्रधान ही रहा है एवं स्कूल के बाद भौतिकतावादी संस्कृति के संपर्क में आ जाए तो ऐसी स्थिति में वह रूढ़िवादी और पुरातनपंथी-भौतिकतावादी बन जाएगा, जो महिलाओं को अपने भौतिक सुखों की प्राप्ति का साधन समझेगा। महिलाओं के खिलाफ क्रूर अपराध वाले मामलों में अधिकांश अपराधी ऐसे ही होते हैं।
ऐसे थम सकते हैं महिलाओं के प्रति अपराध
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए हमें समाज को पुरातनपंथी सोच से प्रगतिशील मानसिकता की ओर ले जाना चाहिए। प्राथमिक स्तर पर इस बात को ध्यान में रखा जाए कि बच्चों के मन-मस्तिष्क में लड़का या लड़की के लिए विभेदकारी दृष्टिकोण न बनने पाए, क्योंकि यह आगे चलकर पूर्वाग्रह पैदा करता है। समाज को समय के साथ अपने नैतिकता के मानदंडों को भी परिवर्तित करने की जरूरत है। साथ ही महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण किए बिना लैंगिक समानता की बात मात्र कल्पना है।