जितनी बड़ी मछली उतना गहरा जाल, ये कहावत अमेरिका पर बिल्कुल फिट बैठती है। अमेरिका दुनिया को अपने जाल में फंसाने की कोशिश करता है। लेकिन भारत ने हर बार अमेरिका की आंखों में आखें डाल कर जवाब दिया और कहा है कि हमारे फॉरेक्स रिजर्व पर तुम्हारा कोई हक नहीं है। अमेरिका के व्हाइट हाउस स्टेट एडवाइजरी पीटर नवारो ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई अपने पास पड़े अमेरिकी डॉलर रिजर्व का इस्तेमाल अमेरिका से पूछकर ही करे। खासकर रूस से तेल खरीदने के लिए इन डॉलर का इस्तेमाल बिल्कुल न करे। लेकिन इस बार भारत ने चुप्पी नहीं साधी। भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने ऐसा करारा जवाब दिया कि वाशिंगटन के होश फाख्ता हो गए।
दरअसल, पीटर नवारो ने हाल ही में फाइनेंशियल टाइम्स में एक आर्टिकल लिखा और भारत को टारगेट किया। उनका कहना था कि अमेरिका का भारत के साथ 40 मिलियन डॉलर का ट्रेड सरप्लस है। ये पैसा आरबीआई के फॉरन रिजर्व में जमा है और इस डॉलर का इस्तेमाल भारत रूस से तेल खरीदने के लिए कर रहा है। नवारो ने साफ साफ कहा कि अमेरिका चाहता है कि भारत अपने डॉलर उसी काम पर लगाए जो वाशिंटन को मंजूर हो। हालांकि ये कोई पहली दफा नहीं है। 1960-70 के दौर में इसी अमेरिका ने जर्मनी को भी इसी तरह से डिक्टेट करने की कोशिश की थी। उस समय अमेरिका ने जर्मनी को कहा था कि आपके सेंट्रल बैंक में भी डॉलर है और उसका इस्तेमाल न तो गोल्ड खरीदने के लिए कर सकते हैं और न ही किसी तीसरे देश से व्यापार के लिए। आप उसे सिर्फ और सिर्फ अमेरिका के साथ व्यापार में इस्तेमाल कर सकते हैं।
आज वही पुरानी चाल अमेरिका भारत पर इस्तेमाल करना चाहता है। सीएनबीसी के साथ एक साक्षात्कार में अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा था कि रूसी कच्चे तेल पर चीन की निर्भरता नई दिल्ली की तीव्र वृद्धि की तुलना में मामूली रूप से बढ़ी है। बेसेंट ने कहा कि आइए पीछे जाकर इतिहास देखें। चीन का आयात बहुत कम है। लेकिन अगर आप 2022 से पहले के आंकड़ों पर नज़र डालें, तो चीन का 13% तेल पहले से ही रूस से आ रहा था। अब यह 16% है। इसलिए, चीन के पास तेल का विविध इनपुट है।
भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने हाल ही में सोशल मीडिया पर अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट पर निशाना साधा। बेसेंट ने रूस से तेल आयात पर भारत पर अतिरिक्त शुल्क लगाने के वाशिंगटन के फैसले का बचाव किया था, जबकि चीन पर ऐसा कोई कदम नहीं उठाया था। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा कि बेसेंट भारत के साथ तनाव पैदा करने में सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं। और वह भी झूठे तथ्यों के आधार पर। उन्होंने यह भी बताया कि चीन की रूसी कच्चे तेल पर निर्भरता सीमांत से भी अधिक है, जो कि बेसेन्ट के बयान के विपरीत है। 2024 के दौरान रूस से चीन का कच्चे तेल का आयात 62.59 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। जुलाई 2025 में, चीन रूसी तेल का सबसे बड़ा आयातक था, उसके बाद भारत और तुर्की का स्थान था। अपने लेख के अंत में, सिब्बल ने यह भी उल्लेख किया कि गज़प्रोम द्वारा संचालित पावर ऑफ़ साइबेरिया पाइपलाइन पूर्वी साइबेरिया से चीन तक गैस पहुँचाती है। उन्होंने आगे कहा कि गज़प्रोम रूस की ऊर्जा रणनीति का एक प्रमुख घटक है और चीन के लिए गैस आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।