यूपी में डबल इंजन सरकार चला रही भाजपा की नजर अब ट्रिपल इंजन पर है। पार्टी की योजना प्रदेश के तमाम शहरी निकायों में भगवा फहराने की है। सरकार और संगठन दोनों इस काम में जुट गए हैं। सीटों के आरक्षण से सामाजिक समीकरण साधने के साथ ही अनुपूरक बजट में नगरीय सुविधाओं के लिए ज्यादा पैदा दिया गया है। वहीं संगठन स्तर पर वोटर लिस्ट दुरुस्त कराने में पूरी ताकत लगाई गई है।
भाजपा की बात करें तो पिछले चुनाव में भी पार्टी ने निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया था। मेरठ और अलीगढ़ को छोड़ कुल 16 में से 14 नगर निगमों पर पार्टी ने कब्जा जमाया था। शाहजहांपुर सहित इस बार नगर निगमों की संख्या 17 हो गई है। पार्टी का पूरा फोकस अबकी बार सभी 17 नगर निगमों के साथ 200 नगर पालिकाओं पर है। इसमें भी जिला मुख्यालय वाली सारी पालिकाओं पर भाजपा नगर निगमों की तर्ज पर ही तैयारी में जुटी है। सभी मंत्रियों को लगाने के साथ ही विधायक-सांसदों को भी संगठन संग तालमेल बनाकर चुनाव में जुटने को कहा गया है। इस बार नगर निगमों सहित तमाम निकायों का परिसीमन भी बदला है। ऐसे में नगर निगमों के अलावा बहुतेरे नगर पालिकाओं और नगर पंचायत शामिल हैं। बदला हुआ परिसीमन भी तमाम सीटों पर पार्टी के लिए मुफीद होगा या नहीं यह देखना दिलचस्प होगा।
सोच-समझकर तय हुआ आरक्षण
प्रदेश सरकार ने गत दिवस 17 नगर निगमों के मेयर सीटों सहित सभी नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों के अध्यक्षों का आरक्षण घोषित कर दिया। 17 में से आठ नगर निगम अनारक्षित होने से पार्टी जहां सामाजिक समीकरण साध सकेगी। इनमें लखनऊ, गाजियाबाद, गोरखपुर, फिरोजाबाद, कानपुर, वाराणसी, बरेली और शाहजहांपुर शामिल हैं। वहीं सामान्य के अलावा ओबीसी और एससी सहित कुल छह नगर निगम महिलाओं के लिए आरक्षित होने का पार्टी आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अपनी कोर वोटरों को साधने का प्रयास करेगी। सोची-समझी रणनीति के तहत आगरा की नगर निगम सीट को फिर अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित किया गया है जबकि पिछले चुनाव में 20 साल बाद यह सीट एससी से सामान्य हुई थी। पार्टी यहां बसपा के वोट बैंक को पूरी तरह अपनी ओर खींचने को प्रयासरत है।