आइए, रंभा तीज के पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि एवं महत्व जानें..

 हिन्दू पंचांग के अनुसार 22 मई को रंभा तीज है। यह पर्व हर वर्ष ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। सनातन धर्म में रंभा तीज पर देवों के देव महादेव संग जगत जननी मां पार्वती की पूजा-उपासना करने का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि रंभा तीज करने वाली महिलाओं पर भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा बरसती है। साथ ही उनकी सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण हो जाती हैं। भगवान शिव की कृपा से विवाहित महिलाओं को सुख, शांति, संतान और सौभाग्य की प्राप्ति होती है, तो अविवाहित लड़कियों की शीघ्र शादी हो जाती है। आइए, पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि एवं महत्व जानते हैं

शुभ मुहूर्त-

ज्योतिषियों की मानें तो ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 21 मई को रात 10 बजकर 09 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 22 मई को रात 11 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः रंभा तीज 22 मई को मनाया जाएगा।

शुभ योग-

– 22 मई को सुबह 5 बजकर 47 मिनट से 10 बजकर 37 मिनट तक अमृतसिद्धि योग है।

– 22 मई को सुबह 5 बजकर 47 मिनट से 10 बजकर 37 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग भी है।

महत्व

सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में समुद्र मंथन के समय स्वर्ग की सबसे खूबसूरत अप्सरा रंभा की उत्पत्ति हुई थी। अप्सरा रंभा की उत्पत्ति ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुई थी। अतः इस दिन रंभा तीज मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं अप्सरा रंभा की भांति सुख, शांति, सौंदर्य और समृद्धि प्राप्ति हेतु व्रत करती हैं।

पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और शिव जी का स्मरण कर दिन की शुरुआत करें। इसके पश्चात नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अब आमचन कर व्रत संकल्प लें और सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, भगवान शिव जी एवं माता पार्वती की पूजा फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, भांग, धतूरा, दूध,दही और पंचामृत से करें। पूजा के दौरान शिव चालीसा का पाठ करें। साथ ही निम्न मंत्र का जाप करें-

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।

सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।

अंत में आरती अर्चना कर भगवान शिव और माता पार्वती की कामना करें। दिनभर उपवास रखें। शाम में आरती अर्चना कर फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें।

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