मोदी सरकार का उद्देश्य सिर्फ आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और सामाजिक आंदोलन

कोई भी देश तभी आत्मनिर्भर बन सकता है, जब वह अपनी रोजमर्रा की जरूरतों का सामान खुद बनाए। स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देना इस दिशा में सबसे जरूरी कदम है। यही वजह है कि दुनिया भर के देश अपने छोटे और कुटीर उद्योगों को मजबूत करने पर जोर देते हैं। देश की समृद्धि तभी संभव है, जब आयात और निर्यात का संतुलन बना रहे और दूसरे देशों पर हमारी निर्भरता कम हो। आज वैश्विक दबावों के बीच भारत में स्वदेशी को बढ़ाने की बात जोर-शोर से हो रही है। इसी दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा और सराहनीय कदम उठाया है जीएसटी की दरों में कटौती। उनका लक्ष्य भारत को आत्मनिर्भर बनाना है,और जीएसटी में राहत छोटे उद्योगों को सस्ता कच्चा माल और कम लागत देकर इस सपने को हकीकत में बदलने की दिशा में एक मजबूत कदम है। मोदी सरकार का उद्देश्य सिर्फ आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और सामाजिक आंदोलन भी है। जब देशवासी स्थानीय उत्पादों को अपनाते हैं, तो वे न केवल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं, बल्कि अपने इतिहास, कारीगरी और परंपराओं को भी संजोते हैं। आज,भारतीय उपभोक्ता पहले से अधिक सजग हैं। वे समझते हैं कि हर स्वदेशी खरीदारी एक रोजगार का सृजन करती है और एक आत्मनिर्भर भारत की नींव को और मजबूत करती है।

घरेलू उद्योगों को एक पहचान 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वदेशी भारत का सपना अब एक नई ऊंचाई की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, और वोकल फॉर लोकल जैसे अभियानों के बाद अब सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में दी जा रही राहतों के जरिए घरेलू उद्योगों को एक नई उड़ान देने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा कुछ आवश्यक घरेलू उत्पादों पर जीएसटी दरों में कटौती की घोषणा की गई है। इसका सीधा लाभ छोटे और मध्यम दर्जे के स्वदेशी निमार्ताओं को मिलेगा। इससे न केवल उनकी उत्पादन लागत घटेगी, बल्कि उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता भी बढ़ेगी। उदाहरण के लिए, हैंडलूम वस्त्र, बांस उत्पाद, घरेलू खिलौने और आयुर्वेदिक दवाओं पर जीएसटी दरों में राहत दी गई है, जो ग्रामीण भारत और पारंपरिक उद्योगों को एक नई ऊर्जा देगी।

छोटे कारोबारियों को फायदा 

जीएसटी की दरों में हालिया बदलाव ने छोटे उद्योगों  के लिए नई उम्मीदें जगाई हैं। 2025 में कई सामानों पर जीएसटी की दरें कम की गई हैं। मिसाल के तौर पर, 28 प्रतिशत के स्लैब से कई उत्पादों को 18 प्रतिशत और कुछ को 12 से 5 प्रतिशत तक लाया गया है। इससे उत्पादन की लागत कम होगी, खासकर हैंडीक्राफ्ट्स और लेदर-फुटवेयर जैसे क्षेत्रों में, जहां जीएसटी 12 से घटकर 5 प्रतिशत हो गया है। इसका सीधा फायदा यह होगा कि छोटे कारोबारियों को कच्चा माल सस्ता मिलेगा, उनकी लागत 7-8 प्रतिशत तक कम होगी, और वे बाजार में ज्यादा प्रतिस्पर्धी बन सकेंगे।  इस कदम से न सिर्फ उत्पादन सस्ता होगा, बल्कि उपभोक्ताओं को भी राहत मिलेगी। इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे टीवी और अन्य सामानों पर जीएसटी 28 से 18 प्रतिशत होने से उनकी कीमतें 7-8 प्रतिशत तक कम हो सकती हैं। इससे लोग ज्यादा खरीदारी करेंगे, खासकर ऑटो, कंज्यूमर गुड्स और एफएमसीजी जैसे क्षेत्रों में। नतीजतन, छोटे उद्योगों की के सामान की बिक्री बढ़ेगी और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।

वैश्विक बाजार में और प्रतिस्पर्धी बनेंगी

जीएसटी में कटौती का एक और बड़ा फायदा निर्यात के क्षेत्र में दिखेगा। कम टैक्स से भारतीय उत्पादों की कीमतें वैश्विक बाजार में और प्रतिस्पर्धी बनेंगी। खासकर लेदर और फुटवेयर जैसे निर्यात-आधारित उद्योगों को इससे खासा लाभ होगा। ये क्षेत्र लाखों लोगों को रोजगार देते हैं, और इनकी मजबूती से ग्रामीण और छोटे शहरों की अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। हैंडीक्राफ्ट्स जैसे क्षेत्रों में कारीगरों को सस्ता कच्चा माल और बेहतर मुनाफा मिलेगा, जिससे उनकी आजीविका सुधरेगी।

वोकल फॉर लोकल का नारा 

भारत विविधताओं वाला देश है,जहां हर क्षेत्र की अपनी विशेषताएं, कारीगरी, उत्पाद और संस्कृति है, लेकिन वैश्वीकरण के कारण हमारे देश के लोकल उत्पादों की उपेक्षा होती रही है। इस स्थिति को बदलने के लिए भारत सरकार ने वोकल फॉर लोकल का नारा दिया है। यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक आंदोलन है जो आत्मनिर्भर भारत की नींव रखता है वोकल  फॉर लोकल का अर्थ है स्थानीय उत्पादों के लिए आवाज उठाना और उनका समर्थन करना। इसका उद्देश्य है कि हम देश में बने उत्पादों को प्राथमिकता दें, उन्हें अपनाएं, और उनके प्रचार-प्रसार में मदद करें ताकि स्थानीय उद्योगों और कारीगरों को प्रोत्साहन मिले।

आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम 

विदेशी उत्पादों पर निर्भरता को कम कर स्वदेशी उत्पादों को अपनाना भारत को आत्मनिर्भर बना सकता है।  जब हम स्थानीय उत्पादों को खरीदते हैं, तो इससे छोटे उद्योगों को बढ़ावा मिलता है और रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। हमारे देश की हस्तकला, कपड़ा उद्योग, मिट्टी के बर्तन, और अन्य पारंपरिक उत्पादों को समर्थन मिलता है। देश में ही उत्पादन और खपत से पैसे का प्रवाह देश के भीतर रहता है, जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है।

आम जनता की भूमिका रहे 

हमें विदेशी ब्रांड्स के पीछे भागने की बजाय भारतीय उत्पादों को अपनाना चाहिए। सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से लोकल उत्पादों का प्रचार करना चाहिए। त्योहारों और अन्य अवसरों पर भारतीय कारीगरों द्वारा बनाए गए सामान का उपयोग करें। उदाहरण के तौर पर आज खादी, हैंडलूम, हस्तशिल्प, आयुर्वेदिक उत्पाद जैसे पतंजलि आदि को अपनाकर लोग  वोकल फॉर लोकल को समर्थन दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश का चिकनकारी, कश्मीर का कढ़ाईदार वस्त्र, और राजस्थान की हस्तशिल्प कलाएं सब हमारी लोकल ताकतें हैं।

गेम-चेंजर साबित होगा फैसला 

कुल मिलाकर, जीएसटी सुधार छोटे उद्योगों के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है। यह न केवल उनकी दक्षता बढ़ाएगा, बल्कि टैक्स की जटिलता को भी कम करेगा। हालांकि इससे सरकारी राजस्व में थोड़ी कमी आ सकती है, लेकिन लंबे समय में यह अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा और विकास दर को बढ़ावा देगा। मोदी जी का यह कदम स्वदेशी को बढ़ावा देने और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने की दिशा में एक मजबूत कदम है। यह छोटे उद्योगों को नई उड़ान देने का वादा करता है, जिससे न सिर्फ कारोबारी, बल्कि पूरा देश समृद्ध होगा।

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