लखनऊ। उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा 2022 के चुनाव से पहले ही यूपी का सबसे बड़ा हिस्सा पूर्वांचल फिलहाल सियासी अखाड़ा बनता नजर आ रहा है। कहते हैं कि जो पूर्वांचल जीता उसने सरकार बना ली। यूपी के इस पूर्वी हिस्से में बढ़त बनाने वाली पार्टी सत्ता की कुर्सी तक पहुंचती है, लिहाजा इस रेस में सूबे की दो सियासी दल एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश में हैं। दोनों के बीच शह- मात का खेल शुरू हो गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 महीने में तीन बार पूर्वांचल का दौरा कर चुके हैं। अब भाजपा के थिंक टैंक अमित शाह 13 नवंबर को पूर्वांचल के आजमगढ़ से सियासी बिगुल फूंक संगठन को एक्टिव करेंगे, तो उससे पहले सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव 7 नवंबर को पुर्वांचल के अंबेडकरनगर में बड़ी रैली कर चुनावी आगाज करेंगे।
अंबेडकर नगर से पूर्वांचल की राजनीति साधेंगे अखिलेश
7 नवंबर को अखिलेश यादव अंबेडकरनगर की धरती से पूर्वांचल की राजनीति साधेंगे। सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के सपा के साथ आ चुके हैं। अब बसपा (बहुजन समाज पार्टी) से निष्कासित पूर्व मंत्री एवं विधायक लालजी वर्मा और राम अचल राजभर भी साइकिल पर सवार होने जा रहे हैं। दोनों नेता 7 नवंबर को अपने गृह जनपद अंबेडकरनगर में रैली कर बड़ा शक्ति प्रदर्शन करेंगे।
पूर्वांचल में जमीन मजबूत करने में लगी सपा
दरअसल, पूर्वांचल में पिछड़ों और अति पिछड़ों की संख्या बहुत ज्यादा है। इनमें कुर्मी व राजभर समाज का अहम स्थान है। कुर्मी बिरादरी के लालजी वर्मा पिछड़ों के रसूखदार नेता हैं। वही, राम अचल राजभर भी पिछड़ी जातियां के बड़े कद वाले नेता माने जाते हैं। कहा जा रहा है कि ओमप्रकाश राजभर के बाद इन पिछड़ी जाति के दो नेताओं के आने से सपा पूर्वांचल में और मजबूत हो जाएगी। अखिलेश यादव 7 तारीख को इस रैली के जरिए अपनी ताकत दिखाएंगे।
आजमगढ़ की धरती से दम दिखाएंगे अमित शाह
13 नवंबर को गृहमंत्री अमित शाह आजमगढ़ आ रहे हैं। वह यहां पर यूनिवर्सिटी का शिलान्यास करने के साथ ही कई परियोजनाओं की सौगात देंगे। इस दौरान उनकी अकबेलपुर में जनसभा भी होगी। इस जनसभा के जरिए अमित शाह पूरे पूर्वांचल को साधने की कोशिश करेंगे। कहते हैं कि जब अमित शाह चुनावी बिगुल फूंकते हैं, तभी संगठन सक्रिय होता है। आजमगढ़ की धरती से अमित शाह सीधे तौर पर अखिलेश यादव को निशाने पर लेकर एक बार फिर पूर्वांचल में पार्टी की जीत का खाका खींचेगे।
2014 से लगातार हर चुनाव में पूर्वांचल में बढ़त रखने वाली भाजपा को आजमगढ़ में निराशा हाथ लगती रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और 2019 में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जीत हासिल की थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ की दस में से केवल एक सीट ही भाजपा जीत सकी थी। 5 सीटों पर सपा और 4 सीटों पर बसपा ने विजय हासिल की थी।
सियासी दलों के लिए क्यों पूर्वांचल है इतना अहम?
दरअसल, यूपी के पूर्वांचल में 28 जिलों की 164 विधानसभा सीटें है। इसे 2017 से पहले तक समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता था। जिस भी पार्टी ने यहां बड़ी बढ़त बनाई, सत्ता की कुर्सी पर बैठी। 2017 में भाजपा को पूर्वांचल की 28 जिलों की 164 विधानसभा सीट में से 115 सीट मिली थी। जोकि भाजपा का अब तक का रिकॉर्ड है।
भाजपा इस रिकॉर्ड को कायम रखना चाहती है। तो वही समाजवादी पार्टी 2012 के करिश्मा को दोहराना चाहती है। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को 102 सीटें पूर्वांचल से मिली थी,और अखिलेश सीएम बने थे। सपा इस बार छोटे दलों और नेताओं को जोड़ कर सियासी समीकरण भी साधने में जुटी है ताकि इस बार भाजपा को पूर्वांचल में मात दे सकें।
पूर्वांचल की जातीय समीकरण में सपा-भाजपा बराबर
पूर्वांचल में जाति आधारित राजनीति भी भरपूर होती है। प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा, अनुप्रिया पटेल का अपना दल (सोनेलाल) और संजय निषाद की निषाद पार्टी जाति पर ही बेस्ड हैं। निषाद पार्टी केवट, मल्लाह और बिंद जैसी जातियों की पार्टी है। वहीं, सुभासपा राजभरों की और अपना दल को कुर्मी समाज की राजनीति करते हैं। इन्हीं कुछ जातियों की पूर्वांचल में अच्छी तादाद है। अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद भाजपा के साथ हैं, लेकिन साल 2017 के चुनाव में भाजपा के साथ लड़ने और बाद में उससे अलग होने वाले सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर अब सपा का दामन थाम बैठे हैं। ऐसे में जातीय गणित में फिलहाल दोनों दल एक-दूसरे से बराबरी कर रहें है।