भीमा कोरेगांव प्रकरण : जेलों में बंद पत्रकारों-समाजकर्मियों की रिहाई की मांग ने जोर पकड़ा

अखिल भारतीय सांस्कृतिक अभियान ने बुलंद की आवाज, ऑनलाइन सम्मेलन में शामिल हुए हजारों लोग

लखनऊ। भीमा कोरेगांव प्रकरण में बंद बुदि्धजीवियों के समर्थन में अखिल भारतीय सांस्कृतिक अभियान ने अपनी आवाज बुलंद की है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शहादत अवसर पर 5000 से अधिक जुड़े, लेखकों और कलाकारों के मंच ने मांग की है कि बुदि्धजीवियों अबिलंब रिहाई की जाए।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शहादत अवसर पर आयोजित सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि महात्मा गांधी की शहादत के 75 वें साल की शुरुआत के इस मौक़े पर लेखकों, पाठकों, कलाकारों और कलाप्रेमियों की यह सभा भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कर्मियों और समाज कर्मियों की अविलंब रिहाई की मांग करती है। 

चार्जशीट पर जल्द हो सुनवाई

सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि यह प्रतिरोध सभा इस दुखद स्थिति पर अपना क्षोभ प्रकट करते हुए आनंद तेलतुंबड़े, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा, वरनन गोंजालविस, हैनी बाबू, सुधीर धवले, सुरेन्द्र गाडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, रोना विल्सन, सागर गोरखे, ज्योति जगताप और रमेश गाईचोर की रिहा करने की मांग करती है। हम अदालत से उम्मीद करते हैं कि वरवर राव और सुधा भारद्वाज समेत इन सभी लोगों के ऊपर लगाए गए आरोपों के संबंध चार्जशीट दाखिल करने के लिए और अधिक समय-विस्तार नहीं देगी। बल्कि मामले की सुनवाई जल्द शुरू करेगी और यथाशीघ्र देश को अपने न्यायोचित निर्णय से अवगत कराएगी।


गिरफ्तारी निराधार


वक्ताओं ने कहा कि अदालती सुनवाई की शुरुआत का इंतज़ार करते ये ज़िम्मेदार नागरिक जिन आरोपों के तहत ग़ैर-जमानती जेलबंदी का उत्पीड़न सहने के लिए मजबूर हैं, वह बेबुनियाद है। इन पर जो आरोप लगाये गये हैं। वह सब पुलिस और जांच एजेंसियों की ओर से गढ़े गये हैं।

साजिशन जन-सरकार का मकसद बताया गया


वक्ताओं ने जारी विज्ञप्ित में कहा कि पहली खेप में पकड़े गए पांच लोगों पर पहले भीमा-कोरेगांव में हिंसा की साज़िश रचने का आरोप लगाया गया, उसके बाद उनकी साज़िश को सनसनीखेज़ तरीक़े से प्रधानमंत्री के ‘राजीव गांधी-स्टाइल असासिनेशन’ की योजना तक खींचा गया और साज़िश में कथित रूप से लिप्त अनेक दूसरे बुद्धिजीवियों-मानवाधिकारकर्मियों की गिरफ़्तारी की गयी और आखिरकार ‘आरोपों के मसौदे’ (draft charges) में सत्रह आरोपों के अंतर्गत प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश के आरोप को शामिल न कर बल्िक ‘सशस्त्र क्रांति के द्वारा जन-सरकार’ क़ायम करने को उनका मुख्य उद्देश्य बताया गया।

इरादे बहुत कुछ जगजाहिर करते हैं


वक्ताओं ने कहा कि कहने की ज़रूरत नहीं कि जांच एजेंसी, जैसे भी मुमकिन हो, उन्हें खतरनाक अपराधी साबित करने पर जुटी है। यह आश्चर्य लगता है कि 22 जनवरी 2020 को महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार की जगह तीन दलों की गठबंधन सरकार के आते ही और उसके द्वारा इस मामले की नए सिरे से तहक़ीक़ात की घोषणा होते ही 24 जनवरी को केंद्र सरकार ने यह मामला केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करनेवाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया।

प्लांट किये गये थे इलेक्ट्रॉनिक सबूत

वक्ताओं ने कहा कि 8 फरवरी 2021 को अमेरिका की आर्सेनल कन्सल्टन्सी ने जो डिजिटल फोरेंसिक एनालिसिस करनेवाली एक स्वतंत्र भरोसेमंद जांच एजेंसी के रूप में प्रतिष्ठित है, अपनी जांच में यह पाया कि एनआईए ने रोना विल्सन के कंप्यूटर से जो इलेक्ट्रॉनिक सबूत इकट्ठा किए थे, वे एक मालवेयर के ज़रिये उनके कंप्युटर में प्लांट किए गए थे। फिर जुलाई में यह बात सामने आई कि ऐसा ही सुरेन्द्र गाडलिंग के कंप्यूटर के साथ भी हुआ था।

पत्राचार भी निकला झूठ


वक्ताओं ने कहा कि जिन पत्राचारों के आधार पर ये गिरफ्तारियां हुई थीं, वह झूठी निकलीं। निस्संदेह, वह अभी भी एक साज़िश का सबूत तो हैं, पर वह साज़िश लोकतान्त्रिक विधि से चुनी गई सरकार के तख्ता-पलट की नहीं, बल्कि इन बुद्धिजीवियों और समाजकर्मियों को फंसाने की साज़िश थी। यह तथ्य सामने आ चुके होने के बावजूद उन्हें जेल में बंद रखकर अपनी सेहत और सक्रियता पर गंभीर समझौते करने के लिए बाध्य किया जा रहा है, इससे अधिक दुःखद और क्या होगा!  

ऑनलाइन प्रस्ताव हुआ पारित


भीमा कोरेगांव प्रकरण में बंद पत्रकारों, समाजसेवियों और लेखकों को छुड़ाने के लिए प्रख्यात लेखक ज्ञान रंजन, नरेश सक्सेना, अशोक वजपायी, कुमार प्रशांत, असग़र वज़ाहत, पंकज बिष्ट, वीरेंद्र यादव समेत 5000 से अधिक लेखकों ने एक प्रस्ताव ऑनलाइन पारित किया।

यह पत्रकार, लेखक और समाजसेवी हैं बंद


भीमा कोरेगांव में प्रकरण में मीरान हैदर, आसिफ इक़बाल तन्हा, शिफ़ा उर रहमान, उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, इशरत जहां, ताहिर हुसैन, गुलफिशां फ़ातिमा, ख़ालिद सैफ़ी, सिद्दीक़ कप्पन और आसिफ़ सुल्तान बंद हैं।