नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय की चेतावनी के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) विरोधी प्रदर्शनकारियों को भेजे गए वसूली से संबंधित सभी 274 नोटिस वापस लेने के आदेश जारी कर दिए हैं है।
शीर्ष अदालत ने नोटिस वापस किए जाने के मद्देनजर सरकार से कहा कि उनकी (जिन्हें नोटिस भेजी गई थी) जब्त संपत्तियों के साथ-साथ सार्वजनिक संपत्तियों के नुकसान के एवज में वसूली गई रकम भी उन्हें वापस कर दें। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने शुक्रवार को बताया कि अदालती आदेश के का पालन करते हुए कारण बताओ नोटिस 14-15 फरवरी को वापस लेने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। इसके बाद न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने कहा कि सरकार ने नोटिस वापस ले लिए हैं। इसलिए (अगर) नोटिस के बाद नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए वसूली की गई है, तो संबंधित व्यक्तियों को वसूल की गई रकम वापस करना होगा। सरकार के वकील गरिमा प्रसाद ने अदालत से मामले में कुर्क की गई संपत्तियों के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने अनुरोध किया।
इस पर याचिकाकर्ता परवेज आरिफ टीटू का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता नीलोफर खान ने पीठ को बताया कि नोटिस के बाद सब्जी बेचने एवं रिक्शा चलाने वाले आदि कई गरीब लोगों को कथित नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति की रकम देने के लिए मजबूर किया गया। सरकार को वो रकम वापस करनी चाहिए।
पीठ ने याचिकाकर्ता की दलील से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि वसूले गए हर्जाने की वापसी होनी चाहिए। न्यायालय ने हालांकि कहा कि नया कानून ‘उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की वसूली अधिनियम, 2020’ के तहत संबंधित मामलों पर विचार किया जा सकता है। नए कानून में राज्य सरकार को सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के दावों का फैसला करने के लिए न्यायाधिकरण स्थापित करने का अधिकार दिया गया है।
श्रीमती प्रसाद ने कहा कि कुछ संपत्तियों को राज्य सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया है। इस पर पीठ ने कहा, “यह कानून के खिलाफ है और अदालत कानून के खिलाफ नहीं जा सकती।” शीर्ष अदालत द्वारा संपत्ति और रकम वापस करने के आदेश पर श्रीमती प्रसाद ने कहा विधानसभा चुनाव के कारण राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू है। तब न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “जब आपको सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करना होता है तो आदर्श आचार संहिता आपको कैसे रोकती है ।’ न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “एक बार आदेश वापस ले लिए जाने के बाद कुर्की कैसे जारी रह सकती है।”
पीठ ने पिछली सुनवाई 11 फरवरी के दौरान राज्य सरकार को फटकार लगाई थी तथा 18 फरवरी तक आखरी मौका देते हुए चेतावनी के साथ कहा था कि नोटिस वापस नहीं लिए गए तो वह उसे रद्द कर देगी। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश के पालन करने में टालमटोल रवैया अपनाने पर राज्य सरकार के प्रति नाराजगी व्यक्त की थी। राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार के बारे में कहा था कि उसने आरोपी की संपत्तियों को कुर्क करते समय खुद ही ‘शिकायतकर्ता, निर्णायक और अभियोजक’ की तरह काम किया। पीठ ने कहा था कि दिसंबर 2019 में शुरू की गई कार्यवाही शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत थी। राज्य सरकार ने पुराने कानून के तहत कार्रवाई की थी।
पीठ ने शीर्ष अदालत के 2009 और 2018 के फैसलों का हवाला देते हुए न्यायिक अधिकारियों को दावा न्यायाधिकरणों में नियुक्त किया जाना चाहिए था, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने ऐसे उद्देश्यों के लिए अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त किए थे। शीर्ष अदालत ने सरकार को आदेश दिया कि जिन प्रदर्शनकारियों से बिना उचित सुनवाई के सार्वजनिक क्षतिपूर्ति की वसूली की गई है, उन्हें रकम वापस कर दी जाये। साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि इस मामले में नए कानून के अनुसार क्लेम ट्रिब्यूनल के फैसले के आधार पर राज्य सरकार कानून के तहत आगे की कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है।
सरकार का पक्ष रख रहीं एडिशनल एडवोकेट जनरल श्रीमती प्रसाद ने पीठ के समक्ष कहा, “हमने अदालतों की टिप्पणियों का सम्मान किया है तथा सभी कारण बताओ नोटिस वापस ले लेने के लिए आदेश जारी कर दिए गए हैं। इस संबंध में संबंधित जिलाधिकारियों को भी अवगत करा दिया गया है। सभी 274 फाइलें क्लेम ट्रिब्यूनल को भी भेजी गईं।”
सरकार के जवाब पर न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने कहा, “हम इस रुख की सराहना करते हैं।’वहीं, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट करते हुए कहा कि हमारे फैसले का अर्थ यह था कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान होने पर जवाबदेही होनी चाहिए। पीठ ने 11 फरवरी को कहा था, “कार्यवाही वापस ले लें या हम इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून का उल्लंघन करने के लिए इसे रद्द कर देंगे।” राज्य सरकार को कानून के तहत उचित प्रक्रिया का पालन करने का निर्देश देते हुए कहा था, “कृपया इसकी जांच करें, हम 18 फरवरी तक एक अवसर दे रहे हैं।”
उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2019 में सीएए प्रदर्शनकारियों को सार्वजनिक संपत्तियों को कथित रूप से नुकसान पहुंचाने के लिए वसूली के वास्ते नोटिस जारी किये गए थे। सरकार की ओर से वकील श्रीमती प्रसाद ने सुनवाई के दौरान कहा था कि 800 से अधिक कथित दंगाइयों के खिलाफ 100 से अधिक प्राथमिकी दर्ज की गईं। उनके खिलाफ 274 वसूली नोटिस जारी किए गए थे। उन्होंने कहा कि 236 में वसूली संबंधी आदेश पारित किए गए जबकि 38 मामलों को बंद कर दिया गया।