गोरखपुर। कुसम्ही जंगल स्थित वनटांगिया गांव जंगल तिकोनिया नम्बर 3. ऐसा गांव जहां दीपावली (Deepawali) पर हर दीप ‘योगी बाबा’ के नाम से जलता है. साल दर साल यह परंपरा ऐसी मजबूत हो गई है कि 60 साल के बुजुर्ग भी बच्चों सी जिद वाली बोली बोलते हैं, बाबा नहीं आएंगे तो दीया नहीं जलाएंगे. बाबा यानी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath). करीब ढाई दशक पहले बतौर सांसद और गोरक्षपीठ उत्तराधिकारी के रूप योगी आदित्यनाथ ने वंचितों में भी वंचित रहे वनटांगियों के साथ दिवाली (Diwali) मनाने की जो परंपरा शुरू की, वह उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद भी जारी है. उनकी दिवाली की शुरुआत ही इस बस्ती से होती है.
इस बार भी दिवाली के आगमन पर सीएम योगी का बस्ती के हर किसी को शिद्दत से इंतजार है. इसके मद्देनजर तैयारियां जोरों पर हैं. प्रशासन तो लगा ही है, गांव के लोग भी अपने बाबा के स्वागत को घर-आंगन को सजाने-संवारने में जुटे हैं. ऐसा होना लाजिमी भी है, 100 साल तक उपेक्षित और बदहाल रहे वनटांगिया समुदाय को नागरिक का दर्जा देने से लेकर समाज और विकास की मुख्य धारा में लाने का श्रेय योगी आदित्यनाथ को ही तो जाता है.
कैसे पड़ा वनटांगिया नाम
ब्रिटिश हुकूमत में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो स्लीपर के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई. इसकी भरपाई के लिए बर्तानिया सरकार ने साखू के नए पौधों के रोपण और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल मे बसाया. साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की ‘टांगिया विधि’ का इस्तेमाल किया गया, इसलिए वन में रहकर यह काम करने वाले वनटांगिया कहलाए.
गोरखपुर-महराजगंज में 23 वनटांगिया गांव
कुसम्ही जंगल के 5 इलाकों जंगल तिनकोनिया नम्बर 3, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी और चिलबिलवा में इनकी 5 बस्तियां वर्ष 1918 में बसीं. इसी के आसपास महराजगंज के जंगलों में अलग-अलग स्थानों पर इनके 18 गांव बसे. 1947 में देश भले आजाद हुआ, लेकिन वनटांगियों का जीवन गुलामी काल जैसा ही बना रहा. जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास देश की नागरिकता तक नहीं थी. नागरिक के रूप में मिलने वाली सुविधाएं तो दूर की कौड़ी थीं. जंगल में झोपड़ी के अलावा किसी निर्माण की भी इजाजत नहीं थी. पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवनयापन का कोई अन्य साधन नहीं था. समय समय पर वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कार्रवाई का भय अलग से बना रहता था.
अहिल्या सरीखे वनटांगियों के लिए राम बने योगी
वर्ष 1998 में योगी आदित्यनाथ पहली बार गोरखपुर के सांसद बने. उनके संज्ञान में यह बात आई कि वनटांगिया बस्तियों में नक्सली अपनी गतिविधियों को रफ्तार देने की कोशिश में हैं. नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए उन्होंने सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को इन बस्तियों तक पहुंचाने की ठानी. इस काम में उनके नेतृत्व वाली महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की संस्थाओं एमपी कृषक इंटर कालेज और एमपीपीजी कालेज जंगल धूसड़ और गोरखनाथ मंदिर की तरफ से संचालित गुरु श्री गोरक्षनाथ अस्पताल की मोबाइल मेडिकल सेवा को. जंगल तिनकोनिया नम्बर 3 वनटांगिया गांव में 2003 से शुरू ये प्रयास 2007 तक आते आते मूर्त रूप लेने लगे. इस गांव के रामगणेश कहते हैं कि वनटांगिया तो अहिल्या थे, महराज जी (योगी आदित्यनाथ को वनटांगिया समुदाय के लोग इसी संबोधन से बुलाते हैं) यहां राम बनकर उद्धार करने आए.
योगी ने वनटांगियों के लिए मुकदमा भी झेला है
वनटांगिया लोगों को शिक्षा के जरिए समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए योगी आदित्यनाथ ने मुकदमा तक झेला है. 2009 में जंगल तिकोनिया नम्बर 3 में योगी के सहयोगी वनटांगिया बच्चों के लिए एस्बेस्टस शीट डाल एक अस्थायी स्कूल का निर्माण कर रहे थे, वन विभाग ने इस कार्य को अवैध बताकर एफआईआर दर्ज कर दी. योगी ने अपने तर्कों से विभाग को निरुत्तर किया और अस्थायी स्कूल बन सका. हिन्दू विद्यापीठ नाम का यह विद्यालय आज भी योगी के संघर्षों का साक्षी है.