हम आपको बता दें कि तुर्किए ने ड्रोन तकनीक, पायलट प्रशिक्षण और एयरोस्पेस सहयोग में तेजी लाने के लिए इंडस्ट्री-टू-इंडस्ट्री कार्य समूह बनाने का प्रस्ताव दिया वहीं चीन ने PAF की रणनीति को पीएलएएएफ के लिए मॉडल मानने की इच्छा जताई।
भारत बार-बार कहता रहा है कि हालिया सैन्य संघर्ष के दौरान पाकिस्तान को चीन और तुर्किये से हर तरह का समर्थन मिला था। लेकिन ये तीनों ही देश इससे इंकार करते रहे हैं लेकिन अब चीन और तुर्किये ने पाकिस्तान के साथ सैन्य समन्वय की घोषणा करके और पाकिस्तानी वायुसेना की तारीफों के पुल बांध कर यह साफ कर दिया है कि वह भारत के लिए एक समन्वित चुनौती पेश करने में जुट गये हैं। हम आपको बता दें कि पाकिस्तान वायुसेना (PAF) को चीन और तुर्किए के वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों से जोरदार प्रशंसा मिली है। बीजिंग और अंकारा से यह “ट्विन एंडोर्समेंट” न केवल पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं की मान्यता है, बल्कि भारत के प्रति गहराते पश्चिमी समर्थन के मुकाबले एक संतुलन बनाने का प्रयास भी प्रतीत होता है। हम आपको बता दें कि बीते सप्ताह इस्लामाबाद में पाकिस्तान एयर हेडक्वार्टर पर चीन के पीएलए एयरफोर्स प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल वांग गांग और तुर्किए के रक्षा मंत्री यासर गुलर ने PAF की रणनीति, नेतृत्व और संचालन क्षमता की प्रशंसा की। यह एक असामान्य कूटनीतिक समन्वय था जिसमें दोनों देशों ने पाकिस्तान की मल्टी-डोमेन ऑपरेशन्स (MDO) की रणनीति को सराहा, पीएएफ के एआई-ड्रिवन टारगेटिंग सिस्टम और साइबर-इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर क्षमताओं की सराहना की और PAF के JF-17 Block III फाइटर जेट की सामरिक दक्षताओं में गहरी रुचि दिखाई।
इसे भी पढ़ें: Namibia में दस्तक देकर Modi ने China की अफ्रीका नीति को कड़ी टक्कर दे डाली है
इस सैन्य सहयोग के समानांतर, पाकिस्तान और तुर्किए ने द्विपक्षीय व्यापार को $5 बिलियन तक बढ़ाने, कराची में तुर्की विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना और इस्तांबुल-तेहरान-इस्लामाबाद ट्रेन के पुनरुद्धार पर सहमति जताई। पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने तुर्किए को “विश्वसनीय मित्र और भरोसेमंद भाई” बताया जो पाकिस्तान की कूटनीति में स्पष्ट झुकाव को दर्शाता है।
PAF की प्रशंसा के निहितार्थों को देखें तो आपको बता दें कि भारत के खिलाफ सैन्य संघर्ष में भले ही वास्तविकता कुछ और हो लेकिन चीन और तुर्किए का समर्थन उसे कूटनीतिक राहत प्रदान करता है। इसके अलावा AI, साइबर वॉरफेयर, ड्रोन तकनीक जैसे क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा और तेज होगी। देखा जाये तो चीन और तुर्किए द्वारा पाकिस्तान वायुसेना की प्रशंसा और रणनीतिक सहयोग की पेशकश केवल सैन्य सहयोग नहीं, बल्कि सैन्य-कूटनीतिक संदेश है— विशेषकर भारत को। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि दक्षिण एशिया की सुरक्षा राजनीति बहुपक्षीय बनती जा रही है, जिसमें हर कदम का असर न केवल सीमाओं पर, बल्कि वैश्विक मंचों पर भी देखा जाएगा।

कूटनीतिक छवि निर्माण की लड़ाई– तुर्किये की साझेदारी के कारण पाकिस्तान को अब OIC, अफ्रीकी और मध्य एशियाई मंचों पर कूटनीतिक समर्थन मिलने की संभावना बढ़ गई है, जो भारत की वैश्विक साख को चुनौती दे सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह त्रिपक्षीय रणनीति केवल रक्षा सहयोग नहीं, बल्कि एक वैकल्पिक एशियाई शक्ति केंद्र की परिकल्पना है जो भारत की पश्चिमी देशों के साथ बढ़ती नजदीकियों का संतुलन बनाना चाहता है। हम आपको बता दें कि भारत की आर्थिक और सामरिक वृद्धि से चिंतित होकर चीन दक्षिण एशिया में ‘प्रॉक्सी इंफ्लुएंस’ बनाना चाहता है। वहीं तुर्किये दक्षिण एशिया में अपनी इस्लामी नेतृत्व छवि को मज़बूत करने हेतु पाकिस्तान को एक सामरिक मंच मानता है। उधर, पाकिस्तान भारत के मुकाबले अपनी सैन्य कमजोरी को बाहरी समर्थन से संतुलित करने की कोशिश कर रहा है।
बहरहाल, चीन, तुर्किये और पाकिस्तान का यह त्रिकोणीय सैन्य समीकरण केवल भारत के खिलाफ रणनीतिक गठजोड़ नहीं, बल्कि एशिया में शक्ति संतुलन की नई परिभाषा को जन्म देने की कोशिश है। भारत को अब केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि डिजिटल युद्धक्षेत्र, कूटनीतिक मंचों और विचारधारा के स्तर पर भी सतर्क रहना होगा।