गुरुदत्त- एक फनकार का फना होना!

डॉ धीरज फूलमती सिंह
वरिष्ठ स्तंभकार

विश्व सिनेमा का इतिहास गुरुदत्त के जिक्र के बिना कभी मुकम्मल नही हो सकता,उनकी बात किये बगैर हमेशा अधूरा रहेगा। भारतीय सिनेमा जगत में मिसाल बन चुके गुरुदत्त एक ऐसे कलाकार थे,जिन्होने अपने जीवन को ही सिनेमा का पर्दा समझ लिया था और उसमे भी अपना सब कुछ झोंक कर ताजिंदगी अदायगी करते रहे। उनके अंदर एक अजीब सी बेचैनी थी,पर्दे पर कुछ अद्भूत, अद्वितीय और अनुकरणीय रचने की बेचैनी!

दुनिया के तकरीबन हर फिल्मी संस्थान में जहां सिनेमा के तकनीकी पहलू से रूबरू करवाया जाता है,वहा गुरुदत्त की तीन मशहूर फिल्मो को टेक्स्ट बूक का दर्जा हासिल है,वो है,” साहब,बीवी और गुलाम”, प्यासा और कागज के फूल!”


कहते है,पुरानी शराब ज्यादा नशीली होती है मतलब ओल्ड ईज गोल्ड…गुरुदत्त…मशहुर कम्पनी गुरुदत्त कंबाइन फिल्म्स कम्पनी इस कम्पनी के झंडे तले एक से बढ़कर एक कई फ़िल्म बनी इनमें से प्यासा और कागज के फूल तो विश्व की 100 फिल्मों में से एक है ये हंसी खेल नही ये चमत्कार किया था श्रेष्ठ निर्माता निर्देशक लेखक कलाकार गुरुदत्त ने! इसने साबित कर दिया था लग्न एकाग्रता से हर मुकाम हासिल किया जा सकता है बेहद कम उम्र में बड़ी सफलता गुरुदत्त ने हासिल की अकल्पनीय धन अचल सम्पति अर्जित करी।

बहरहाल बेहद फकीरी में जन्म हुआ गुरुदत्त साहब का 9 जुलाई 1925 को बंगलूर में बचपन से ही उनकी माता पिता की घर मे जमती नही थी यही से गुरुदत्त को कलकते में नोकरी मिली 3 साल करने के बाद छोड़ आये पर कलकते बंगाल की जीवनशैली उन्हें भा गयी थी इधर बंगलोर में उनके पिताजी की बैंक से नोकरी छुटी तो सम्पूर्ण जवाबदारी गुरुदत्त पर आ गयी।

लेखन के शौक ने उन्हें पुणे मुम्बई पहुँचाया… वी शान्ताराम के प्रभात स्टुडियो से होते ज्ञान मुखर्जी और अमिया चक्रवर्ती की सँगत में सहायक निर्देशन बने पर बात बनी नही कई फिल्मों में नृत्य निर्देशन किया यही उनके रोजगार का जरिया भी बना। यही पर उनकी मुलाकात देवआनंद और रहमान से हुई जो पक्की दोस्ती में बदली आजीवन भी चली।


हुआ यूं कि देवआनंद और गुरुदत्त एक ही लॉडरी में कपडे घुलवाते थे,एक दिन गलती या कह ले किस्मत से दोनो की शर्ट बदल गई! बस यही से शुरू हो गई उनकी दोस्ती, रोज मिलना, चाय-नाश्ता और गप्पे मारना और एक दिन उन्होंने एक दूसरे से वादा किया कि जब भी फिल्म में काम मिलेगा,वे एक दूसरे को मौका जरूर देगे और सबसे पहले देवआनंद ने अपना वादा निभाया,अपनी कंपनी नवकेतन के बैनर तले फिल्म बाजी के निर्देशन का जिम्मा गुरुदत्त को दिया,फिल्म धुआंधार कामयाब हुई लेकिन इसके बाद की दो फिल्मे जाल और बाज सुपर फ्लाप रही,जिस वजह से देवआनंद और गुरुदत्त के बीच मनमुटाव होने से संबंधो में खटास पैदा हो गई,मगर बाद में गलत फहमी दूर होने पर दोनो के संबंधो की दरार पट गई और मिठास पैदा हो गई।


नवकेतन बेनर तले उन्हें देवआनंद ने निर्देशन का मौका दिया था,इस तरह गाड़ी पक्की चल पड़ी 1951 में आई बाज़ी फ़िल्म ने क्राइम की दुनिया मे तहलका मचा दिया दर्शक उस तरह की फ़िल्म पहली बार देखी थी बाज़ी के हिट ने उन्हें बेमिसाल निर्देशक बनाया, राज खोसला उन दिनों उनके सहायक थे बाजी उस दौर में हिट हुई जब राज कपूर और दिलीपकुमार का दौर था, महबूब खान सोहराब मोदी राज कपूर, बी आर चोपड़ा, इत्यादि के दौर में कल के नोजवान ने अपनी तरफ सबका ध्यान खींचा था।

1954 में आरपार फ़िल्म ने एक नया सिनेमा दर्शकों को दिया फ़िल्म सुपरहिट हुई और गानों ने धूम मचा दी थी इस हिट फिल्म से उन्हें शोहरत पैसा सब कुछ दिया एक तरह से गुरुदत्त फिल्म्स की नींव रखी गयी थी। सी आई डी और मिस्टर और मिसेस 55 फिल्मों ने अकल्पनीय सफलता प्राप्त की थी। ज्यादा महत्वकांशी होना गुरुदत्त को इसी 1957 से भारी पड़ा था फ़िल्म प्यासा तो ग़ज़ब की हिट थी! पर घर की कलह ने उनको दिमागी तौर पर खत्म कर दिया था क्योंकि बचपन से ये आलम वे घर मे देख चुके थे।गीतादत्त बेहद शानदार गायिका थी पर उनकी पति गुरुदत्त से कभी नही बनी, देखा गया है कोई भी इंसान जग जहाँ से लड़ सकता है पर घर के झगड़े से टूट जाता है खासकर तब जब झगड़े सार्वजनिक हो उठे।

1959 में आई कागज़ के फूल बेहतरीन फ़िल्म थी पर फ्लॉप हुई थी, नशे की गर्द ने गुरुदत्त को खोखला कर दिया था गोलियों शराब तमाखू तीन नशे एक साथ करना भारी पड़ गया था।वहीदा रहमान की बेरुखी ने उनको तोड़ दिया था…इसी वजह से कोई भी निर्णय लेने की क्षमता गुरुदत्त की खत्म हुई थी आत्मविश्वास कम होता गया कई फिल्मों की घोषणा की आधे में बंद हुई थी…साहब बीबी और गुलाम और चौदहवी का चांद की जबरदस्त सफलता ने गुरुदत्त को एक आत्मविश्वास दिया नई पारी खेलने के लिए और वो तैयार भी थे कुछ और फिल्मों की घोषणा की भरोसा नामक हिट फिल्म भी दी थी।

पर एक बार जो मानसिक रोगी हो गया और दवाइयां पेट मे गयी शॉट लगे उसे सम्भलना मुश्किल है कुछ मित्रो और प्रेमिकाए ने दिल तोड़ा जो सीधा दिमाग पर असर कर गयी थी। मौत की राह उन्होंने खुद चुनी थी एक तरह से मतलब भरी दुनिया का नँगा रूप देखकर उसे दोगला जीवन रास नही आया न उन्हें मंजूर था, जहां सगा सगे गला काटे सामने मिलकर अच्छा बोले पीठ पीछे बुराई करे उसे मंजूर नही हुआ चौतरफा अंधेरा नजर आते ही 10 अक्टूम्बर 1964 बेपनाह शराब पीकर नशे की गोलियां खाकर उन्हें दुनिया को अलविदा कहा…मात्र 39 साल की उम्र में ये महान आत्मा इतहास बन गयी छोटी उम्र में बहुत कुछ देखा पर अफसोस होता है ये और भी कुछ दे सकते थे बेमिसाल फिल्में दुनिया के जाने के बाद ही उनकी कदर हुई थी जब उसे दुनिया की जरूरत थी ये दुनिया जब भी देती है मरने के बाद ही देती है बहरहाल उनके पुत्रो ने कोई चमत्कार नही किया जो अक्सर होता है दिया तले अंधेरा। उनके भाई आत्माराम ने उनके झंडे तले अपनी लागत पर कई फिल्में बनाई…बहारे फिर भी आएंगी .चन्दा और बिजली, बचपन, शिकार,ईमान, कैद, आरोप, खँजर, आफत,रेशम की डोरी, इत्यादि।

इस तरह गुरुदत्त फिल्म्स बन्द हो गयी उस दौर के दर्शक सिने प्रेमी जानते है गुरुदत्त क्या हुआ करते थे….देवानन्द..रहमान..जॉनी वाकर, राजखोसला, वहीदा रहमान, प्रमोद चक्रवर्ती इनकी ही देन है । बेहद धन दौलत अचल सम्पति उन्होंने छोड़ी थी जो उनके परिवार के लिए बहुत थी। चलते-चलते मै एक बात याद दिलाना चाहूंगा कि एक दफा गुरुदत्त के बेटे तरूण दत्त ने धर्मयुग पत्रिका में अपने पिता की आकस्मिक मृत्यु के बारे में कहा था कि यह आत्म हत्या या फिर हादसे से बढ कर हत्या की साजिश नजर आती है। गुरुदत्त की फिल्मे इस बात की गवाह है कि भारतीय सिनेमा के आकाश में कितना बडा अभिनेता, निर्देशक और फिल्म निर्माता हुआ था,उसके जैसा ना कभी कोई हुआ,ना है और ना होगा।