मीडिया के विद्यार्थियों को संबोधित किया
नई दिल्ली। भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित सत्रारंभ समारोह के समापन अवसर पर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि मोबाइल, इंटरनेट और डिजिटलाइजेशन से मीडिया के स्वरूप में परिवर्तन आया है। इस बदलते दौर में ‘फैक्ट’ और ‘फेक’ के बीच लक्ष्मण रेखा खींचने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक के द्वारा जनता से सीधा संवाद किया जा सकता है। मीडिया को तकनीक का इस्तेमाल देश की एकता और अखंडता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए करना चाहिए। इस अवसर पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव एवं आईआईएमसी के अध्यक्ष अपूर्व चंद्र, आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी, अपर महानिदेशक आशीष गोयल और सत्रारंभ कार्यक्रम के संयोजक एवं डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह सहित आईआईएमसी के सभी केंद्रों के संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
मीडिया के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए अनुराग ठाकुर ने कहा कि कोरोना के दौर में संचार के मायने बदल गए हैं। लोगों तक सूचनाएं पहुंचाने के नए तरीके सामने आए हैं। आज वैश्विक मीडिया परिदृश्य बदल रहा है और जब आप पढ़ाई पूरी करके मीडिया इंडस्ट्री में पहुंचेंगे, तब तक ये और भी ज्यादा परिवर्तित हो चुका होगा। उन्होंने कहा कि भविष्य के पत्रकार के तौर पर आने वाले समय में आप जो भी कहेंगे या लिखेंगे, वह लोगों को किसी भी मुद्दे पर अपनी राय बनाने में मदद करेगा। इसलिए, आपको बहुत सोच समझकर कहने और लिखने की आदत डालनी होगी। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री के अनुसार आज तकनीक हर क्षेत्र में पहुंच गई है। कोविड ने हमारी हर योजना को प्रभावित किया है। लेकिन इस दौर में हमारे सामने नई शुरुआत करने का अवसर है। चीजों को नए तरीके से देखने और समझने का अवसर है। आज पूरे विश्व को ऐसे लोगों की आवश्यकता है, जो दुनिया में रचनात्मक परिवर्तन ला सकें।
ठाकुर ने कहा कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय वर्तमान एवं भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखकर अपनी तैयारी कर रहा है। सरकार का ये मानना है कि सही सूचना के प्रयोग से आम आदमी किसी भी विषय पर सही निर्णय ले सकता है। इसलिए, मीडिया और सोशल मीडिया के बदलते समय में सरकार मानव केंद्रित संचार व्यवस्था पर काम रही है, जिससे सूचना तुरंत आम आदमी तक पहुंचाई जा सके। उन्होंने कहा कि सरकार की योजना समाज के अंतिम व्यक्ति तक जानकारी पहुंचाने की है और स्थानीय और क्षेत्रीय मीडिया की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है।
सही सूचना का सही प्रयोग बेहद जरूरी : चंद्र
इस अवसर पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव एवं आईआईएमसी के अध्यक्ष अपूर्व चंद्र ने कहा कि समाचारों का माध्यम पहले सिर्फ अखबार ही होते थे, लेकिन तकनीक के परिवर्तन के कारण आज सब कुछ आपके मोबाइल में सिमट गया है। आज आपके पास सूचनाओं का भंडार है, लेकिन कौन सी सूचना महत्वपूर्ण है और कौन सी नहीं, ये आम आदमी को नहीं पता चल पाता। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय इस दिशा में गंभीरता से कार्य कर रहा है, ताकि लोग सही सूचना का सही प्रयोग कर पाएं।
‘इनोवेशन’ पर ध्यान दें युवा : प्रो. द्विवेदी
आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में अगर कोई शब्द सबसे ज्यादा चर्चा में रहा है, तो वह ‘इनोवेशन’ है। किसी भी संस्थान में इनोवेशन के लिए क्षमता, ढांचा, संस्कृति और रणनीति प्रमुख तत्व हैं। आने वाले समय में वे ही कंपनियां अस्तित्व में रहेंगी, जो इनोवेशन पर आधारित सेवा देंगी। उन्होंने कहा कि पिछले एक वर्ष में आईआईएमसी ने मीडिया शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में जो नवाचार किए हैं, वह देश के अन्य मीडिया शिक्षण संस्थानों के लिए एक मिसाल हैं।
सोशल मीडिया और टीवी एक-दूसरे के पूरक : प्रसाद
‘टीवी न्यूज का भविष्य’ विषय पर विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और संपादक अनुराधा प्रसाद ने कहा कि जब हम अखबार पढ़ते हैं तो हमें एक दिन पुरानी खबरें वहां मिलती हैं, लेकिन टीवी और डिजिटल मीडिया में आपको एक मिनट पहले की खबर भी मिल जाती है। जिस तरह टीवी चैनल और अखबार एक दूसरे के पूरक हैं, उसी तरह सोशल मीडिया और टेलीविजन भी एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने कहा कि टीवी चैनल आने पर लोग कहा करते थे कि अखबार बंद हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिन अखबारों ने अपने कंटेंट में बदलाव किया, वह आज भी मीडिया जगत में सक्रिय हैं।
सफलता का माध्यम नहीं है अंग्रेजी : सानु
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में लेखक क्रान्त सानु ने ‘अंग्रेजी : समाचार की भाषा बनाम शिक्षा के माध्यम की भाषा’ विषय पर विद्यार्थियों से बातचीत की। सानु ने कहा कि जब कोई अच्छी अंग्रेजी बोलता है, तो उसे पढ़ा-लिखा समझा जाता है और हिंदी बोलने वाले को कमतर समझा जाता है। जब आप विदेशों में जाते हैं, तो आपको इस वास्तविकता का पता चलता है कि सभी देशों में अंग्रेजी सफलता का माध्यम नहीं है। उन्होंने कहा कि दुनिया के 20 सबसे विकसित देशों में से सिर्फ 4 विकसित देशों में ही अंग्रेजी का उपयोग होता है और वो भी इसलिए क्योंकि ये उनकी अपनी भाषा है। बाकि 16 देशों में लोग अपनी मातृभाषा का ही इस्तेमाल करते हैं।
भारतीय संचार परंपरा में वैश्विक समन्वय का भाव : प्रो. अधिकारी
इस मौके पर काठमांडू विश्वविद्यालय के प्रो. निर्मल मणि अधिकारी ने ‘भारतवर्ष की संचार परंपरा’ विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत की सभी भाषाओं, वेदों और ग्रंथों में विविधता होते हुए भी पूरे विश्व के साथ उनका बेहतर तालमेल है। उन्होंने कहा कि भारत से अन्य देशों में पढ़ाई करने गए लोगों ने अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई की और फिर उसी की नकल कर भारत की शिक्षा पद्धतियों का निर्माण किया। इस कारण भारत की शिक्षा व्यवस्था और संचार परंपरा पर अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ता गया।