स्वच्छ वायु और जलवायु परिवर्तन को रोकने में कमजोर पड़ रही हैं अमेज़ॅन, फ्लिपकार्ट सहित छह सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां

हाल में ही जारी हुई “द ग्रेट इंडियन ई-कॉमर्स बूम वर्सेस इट्स क्लाइमेट कास्ट” नामक वैश्विक रिपोर्ट के प्रमुख बिन्दु

नई दिल्ली। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों ने महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज किया है। अपने उत्पाद और खाद्य सामग्री को उपभोक्ता तक सीधे पहुंचाने के लिए डिलिवरी वाहनो की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई, विशेषकर टियर -1 और टियर -2 शहरों में। हाल ही में जारी एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार ई कामर्स में इस वृद्धि के कारण ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, वायु प्रदूषण और सड़कों पर भीड़भाड़ में वृद्धि हुई है।


ये निष्कर्ष हाल में ही संपन्न हुए इंटरनेशनल कान्फ्रेन्स ऑन क्लाइमेट चेन्ज (कॉप26) के संदर्भ में और महत्वपूर्ण हो जाते हैं जहां भारत ने 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने का वादा किया है।

डच शोध संस्था, द सेंटर फॉर रिसर्च ऑन मल्टीनेशनल कॉरपोरेशन- स्टिचिंग ओन्डरज़ोएक मल्टीनेशनेल ओन्डर्नमिंगन (सोमो) की एक रिपोर्ट “पैकेट डिलिवरी से गरमाती धरती” को “स्टैण्ड अर्थ” और ‘असर’ ने कमीशन किया है।


अर्बन मूवमेंट इनोवेशन (यूएमआई) द्वारा वित्तपोषित इस शोध में छ: सबसे बड़ी ई कॉमर्स और लॉजिस्टिक कंपनियों को शामिल किया गया था। ये कंपनियां हैं, अमेजॉन, वालमार्ट, फ्लिपकार्ट, यूपीएस, डीएचएल और फेडएक्स। इन कंपनियों पर शोध से स्पष्ट प्रमाण मिला है कि ये सभी कंपनियां वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री तक कम करने में सहयोग करने से पूरी तरह विफल साबित हुई हैं। ये कंपनिया आगे कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए क्या उपाय करने जा रही हैं इसका भी खाका प्रस्तुत करने में असफल रहीं हैं।

शोध के मुताबिक ऐसे समय में जब सभी कंपनियों तथा स्थापित ब्रांड द्वारा वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस कम करने के लिए शून्य कार्बन उत्सर्जन की दिशा में निर्णायक कार्य करना है तब ऐसे में सर्वेक्षण में शामिल कोई भी ई कॉमर्स कंपनी शून्य कार्बन उत्सर्जन की दिशा में जमीन पर कोई भी ठोस कार्य नहीं कर रही है। वालमार्ट इकलौती ऐसी कंपनी है जिसने अपने सभी प्रकार के कार्य संपादन में 2040 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है।

इस संबंध में सोमो के शोधकर्ता इलोना हर्टलिफ कहती हैं “ज्यादातर कंपनियों ने अब जाकर इलेक्ट्रिक वाहनों का बेड़ा तैयार करना शुरु किया है। कंपनियों को समझना है कि अगर तय समय में शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करना है तो उनको ये प्रयास तेज गति से करना होगा।”

अध्ययन में कहा गया है कि “केवल फ्लिपकार्ट ने 2030 तक और फेडएक्स ने 2040 तक आखिरी बिन्दु तक वितरण वाहनों को बैटरी चालित वाहनों में परिवर्तित करने का निर्णय लिया है, जबकि डीएचएल ने अपने 60 प्रतिशत वाहनों को ई वाहन में पपिवर्तिन करने का संकल्प किया है। अमेजन ने जहां 2040 तक सभी आखिरी बिन्दु तक वितरण करनेवाले वाहनों को ई वाहन में परिवर्तित करने का निर्णय लिया है तो यूपीएस ने इस बारे में अभी कोई निर्णय नहीं लिया है।”

अध्ययन में पाया गया कि फ्लिपकार्ट और अमेजन ने ये जरूर वादा किया है कि 2021 के अंत तक वो अपने आखिरी वितरण बिन्दु तक क्रमश: 2000 और 1800 वाहनों को ई वाहनों में परिवर्तित कर देंगे लेकिन ई वाहनों के बारे में कंपनी के भीतर संपूर्ण परिदृश्य को लेकर इनकी ओर से कुछ नहीं कहा गया है। वालमार्ट की ओर से अभी केवल पॉयलट प्रोजेक्ट शुरु किया गया है और वर्तमान समय में उनके द्वारा कितने ई वाहनों का उपयोग किया जा रहा है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी है।

गंगा तराई के क्षेत्र और लगभग समूचा उत्तर भारत इस समय जैसे वायु प्रदूषण का सामना कर रहा है या फिर दक्षिण के राज्यों में जिस तरह से अचानक बेमौसम बाढ आयी है या फिर भारत के कई शहरों में जिस तरह से बेमौसम बरसात हुई है उसे देखकर लगता है कि जलवायु परिवर्तन का असर दिखना शुरु हो गया है। मौसम में हो रहे इन असामयिक परिवर्तनों को देखते हुए कार्बन उत्सर्जन को करने के लिए तय लक्ष्यों के प्रति गंभीरता से कार्य करने की सख्त जरूरत है।

अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया है कि अगर जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटना है तो शहरों में तेजी से ई वाहनों के इस्तेमाल को बढावा दिया जाना चाहिए ताकि कम समय में ज्यादा से ज्यादा ई वाहनों को सड़क पर उतारा जा सके। इसमें लॉस एंजेल्स, लंदन और दिल्ली जैसे शहरों पर विशेष तौर पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है।

अध्ययन में दिल्ली के बारे में विशेषतौर पर कहा गया है कि “जनसंख्या के मामले में दिल्ली विश्व में तेजी से विकसित होता शहर है लेकिन दिल्ली की वायु गुणवत्ता दुनिया के शहरों में सबसे खराब है। दिल्ली की वायु गुणवत्ता को खराब करने में वाहनों का बड़ा हिस्सा है। दिल्ली के प्रदूषण में 38 प्रतिशत योगदान मोटर वाहन का है जिसमें ट्रक, ऑटोरिक्शा, दो पहिया वाहन, कार सभी शामिल हैं।”

अध्ययन में पाया गया है कि दिल्ली जैसे शहरों में जहां पहले ही वाहनों की भारी भीड़ है अगर वहां ई कामर्स और अंतिम बिन्दु तक माल डिलिवरी करनेवाली कंपनियों की गतिविधियां बढती हैं तो इससे इन शहरों की समस्याएं और जटिल हो जाएगीं। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक बढते ई कॉमर्स परिवहन से इन शहरों में सड़कों पर भीड़ भाड़ और स्थानीय प्रदूषण बढेगा जिसका सीधा असर जलवायु परिवर्तन पर होगा।

दिल्ली के साथ ही बंगलौर, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई जैसे भारत के बड़े शहरों में भी अमेजन और फ्लिपकार्ट का ई कामर्स व्यापार बढ रहा है। दुर्भाग्य से इन सभी शहरों की वायु गुणवत्ता पहले से ही खराब स्थिति में है। डीजल पेट्रोल आधारित वाहनों के जरिए ई कॉमर्स की बढती गतिविधि से इन शहरों की वायु गुणवत्ता और खराब ही होगी।

इस बारे में ‘असर’ से जुड़े सिद्धार्थ श्रीनिवास कहते हैं कि “शहरों के स्थानीय निकाय और राज्य सरकारों को चाहिए की वो वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए निरंतर प्रयासरत रहें। इसके लिए वो विभिन्न हितधारकों जैसे उपभोक्ता समूहों, नागरिक समूहों और वितरण कंपनियों को शामिल करके नीति और नियम बना सकते हैं ताकि ई कामर्स कंपनियों के जरिए होने वाले वितरण में शून्य कार्बन उत्सर्जन सुनिश्चित हो सके।” इसके साथ ही कंपनियों को अपने वितरण व्यवस्था को भी पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। सिद्धार्थ श्रीनिवास का कहना है कि “आर्थिक और उर्जा सुरक्षा को प्राप्त करने के साथ साथ ऐसे उपाय इस क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों को भी व्यापक स्तर पर लाभ पहुंचाएंगे।”

अमेजॉन, फ्लिपकार्ट, डीएचएल, यूपीएस जैसी बड़ी ई कामर्स कंपनियों ने अगले पांच से दस साल में व्यापक स्तर पर ई वाहन खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। अध्ययन में इस बात पर विशेष जोर दिया गया है कि जिस तरह से वर्तमान में इन ई कामर्स कंपनियों द्वारा बहुत सीमित मात्रा में ई वाहनों का इस्तेमाल किया जा रहा है उसे देखते हुए इन कंपनियों को तेजी से ई वाहनों के प्रयोग को बढावा दिया जाना चाहिए। भविष्य में जिस तरह से ई कामर्स के बढत की संभावना जताई जा रही है, उसे देखते हुए इन छह कंपनियों द्वारा ई वाहनों के इस्तेमाल को भी बढावा दिये जाने की जरूरत है।

नेचुरल रिसोर्स डिफेन्स प्रोग्राम, इंडिया के सलाहकार और एयर क्वालिटी एण्ड क्लाइमेट रिलायंस के प्रमुख पोलाश मुखर्जी का कहना है कि ” आईसीई सहयोगियों के साथ टीसीओ समानता को देखते हुए आखिरी केन्द्र तक सामान वितरण के लिए ई वाहनों का इस्तेमाल जरूरी है। भारतीय शहरों में हवा की खराब गुणवत्ता को देखते हुए ये जरूरी है कि ई कॉमर्स और वितरण कंपनियां कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए ई वाहनों का तत्काल इस्तेमाल शुरु कर दें। ये रिपोर्ट हमें बताती है कि हमें महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय करने होंगे और उन लक्ष्यों के प्रति पारदर्शिता से तत्काल काम करना होगा।”

इन्वॉयरनिक्स ट्रस्ट के प्रबंध ट्रस्टी श्रीधर राममूर्ति का कहना है कि पार्सल वितरण कंपनियों के व्यापार में कोविड काल में असाधारण वृद्धि हुई है। यह पहले ही कार्बन उत्सर्जन में चिंताजनक बढ़ोत्तरी कर चुका है जिसे कम करना मुश्किल है। ऐसे में ई वाहनों और ग्रीन वाहनों के जरिए पार्सल तथा पैकेट वितरण कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए जरूरी है। शहरी जनसंख्या के द्वारा जिस तरह से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि हो रही है उसे कम करने के लिए ई कामर्स कंपनियों को ग्रीन परिवहन को अपनाना ही होगा। इस लिहाज से सोमो रिपोर्ट कंपनियों और नागरिक समाज के लिए एक सराहनीय प्रयास है।