विंटर फ्लू की तरह ही समर फ्लू भी आपकी सेहत को प्रभावित करता है तो आइए जानते हैं इस बारे में..

वैसे तो इन्फ्लुएंजा या फ्लू ज्यादातर सर्दियों में होता है। सर्दियों के मौसम में लाल आंखें और बहती नाक आम बात होती है, लेकिन कभी-कभी, गर्मी के मौसम में भी लोग फ्लू की चपेट में आ जाते हैं और इसी को समर फ्लू कहा जाता है। विंटर फ्लू की तरह ही समर फ्लू भी आपकी सेहत को प्रभावित करता है। आइए जानते हैं इस बारे में। 

समर फ्लू क्या है?

जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, समर फ्लू सांस का संक्रमण है, जो गर्मियों में होता है। सर्दी के फ्लू की तरह ही यह भी इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण होता है। यह वायरस दिसंबर से फरवरी के महीने के बीच सबसे ज्यादा सक्रिय रहता है, लेकिन यह गर्मी बढ़ने पर भी परेशान कर सकता है। इसके मुख्य लक्षणों में बहती नाक, सिरदर्द, ठंड लगना, बुखार और शरीर में दर्द शामिल हैं। 

आमतौर पर, लोगों को समर फ्लू के इलाज की जरूरत नहीं होती है। आराम करने पर कुछ ही दिनों के बाद लक्षण और बेचैनी कम होने लगती है, लेकिन अगर परेशानी बढ़ जाए, तो डॉक्टर को दिखाना जरूरी हो जाता है। आइए जानते हैं फ्लू की वजह से किन बीमारियों के बढ़ जाने की आशंका बढ़ जाती हैः-

न्यूमोनिया

फ्लू का अगर सही समय पर इलाज न किया जाए तो वह निमोनिया में बदल जाता है। यह एक गंभीर रोग है, जिसकी वजह से व्यक्ति की जान भी जा सकती है। यह फ्लू वायरस के संक्रमण या फ्लू वायरस और बैक्टीरिया के सह-संक्रमण से भी हो सकता है।

इसके शुरुआती लक्षण साधारण फ्लू के समान ही होते हैं। इसमें बुखार, ठंड लगना और सिरदर्द शामिल है। इसके अलावा हरे या पीले बलगम वाली खांसी, सांस की तकलीफ और सीने में तेज दर्द भी शामिल हैं।

ब्रोंकाइटिस

ब्रोंकाइटिस आपके फेफड़ों में ब्रोन्कियल नलियों की सूजन है। निमोनिया की तरह, ब्रोंकाइटिस कभी-कभी फ्लू वायरस के कारण हो सकता है। हालांकि, यह अन्य वायरस या पर्यावरणीय कारकों जैसे सिगरेट के धुएं के कारण भी हो सकता है। इसके लक्षणों में खांसी, बुखार, ठंड लगना और थकान शामिल हैं।

कान की बीमारियां

बैक्टीरिया और वायरस के कारण होने वाले संक्रमण या फिर फ्लू की वजह से नाक के मार्ग और गले में सूजन और जमाव पैदा होता है और यूरोटेशियन ट्यूब ब्लॉकेज का कारण बनता है। इसके होने पर बेचैनी, कान के अंदर दर्द, मवाद या कान के बहने जैसी समस्याएं उभर कर आती हैं। इसके अलावा फ्लू ‘ऑटोइट मीडिया’ भी कारण हो सकता है। ये कान के मध्य में होने वाला संक्रमण है और बच्चों को ज्यादा होता है। इससे बहरेपन का खतरा बढ़ जाता है। तेज बुखार, कान में दर्द, सुनने में कठिनाई या कान से पस निकलना इसके लक्षण है।

फ्लू से किन लोगों को ज्यादा खतरा होता है?

फ्लू से कोई भी बीमार हो सकता है, यहां तक कि सेहतमंद लोग भी इससे बच नहीं सकते हैं।  फ्लू से संबंधित गंभीर समस्याएं किसी को भी, किसी भी उम्र में हो सकती हैं, लेकिन कुछ लोगों को फ्लू की वजह से होने गंभीर जटिलताओं का खतरा अधिक होता है। इसमें 65 साल और उससे अधिक उम्र के लोग, अस्थमा, मधुमेह, या दिल के मरीज शामिल हैं। इसके अलावा गर्भवती महिला और 5 साल से छोटे बच्चे को फ्लू को खतरा ज्यादा होता है।

कौन-कौन सी जांचें जरूरी हैं?

अगर प्लू काफी समय से बना हुआ है या फिर समस्या बढ़ गईं हैं, तो डाक्टर की सलाह पर लक्षणों का कारण जानने के लिए कुछ जरूरी टेस्ट करा सकते हैं। आइए जानते हैं इन जांचों के बारे में-

फिजिकल एग्जामिनेशन- एक डाक्टर के सुपरविजन में गले, फेफड़ों और बीमारी के अन्य लक्षणों की जांच बेहद जरूरी है। इससे आप रोग के गंभीर होने से पहले इलाज शुरू कर सकते हैं।

नाक या गले की सूजन- अगर आपके नाक या गले में सूजन आ जाती है तो इसके लिए आपके नाक मार्ग या गले से नमूना लिया जाता है। इसके बाद पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (पीसीआर) जैसी लैब टेकनीक का इस्तेमाल करके इन्फ्लूएंजा सहित सांस के कई तरीके के वायरस के लिए इस नमूने से परीक्षण किया जाता है।

बल्ड टेस्ट: खास एंटीबॉडी या वायरल एंटीजन की उपस्थिति का पता लगाने के लिए रक्त के नमूने लिए जा सकते हैं, जो बीमारी के कारण की पहचान करने में मदद करते हैं।

ध्यान देने वाली बात ये है कि गर्मी के मौसम में होने वाले फ्लू या सांस का संक्रमण कभी-कभी बड़े खतरे में बदल सकते हैं। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली या पहले से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे लोगों को इसका खतरा ज्यादा होता है। इसलिए आप जब भी गंभीर या लगातार लक्षणों का अनुभव करते हैं, तो तुरंत डाक्टर की सलाह लें। डाक्टर आपकी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के आधार पर उचित इलाज और गाइडेंस देगा।

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