महाराष्ट्र: चार दशक में तीसरी बार मिला मराठा आरक्षण

मराठा आरक्षण विधेयक में यह उल्लेख किया गया है कि राजर्षि शाहू महाराज ने साल 1902 में मराठा समुदाय को आरक्षण का लाभ दिया था। विधेयक में कहा गया है कि पूर्ववर्ती कोल्हापुर रियासत और तत्कालीन मुंबई राज्य ने भी अपनी रिपोर्ट में मराठा समुदाय को पिछड़े वर्गों में से एक के रूप में मान्यता दी थी।

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का संघर्ष चार दशक पुराना है। इस दौरान तीन बार मराठा समुदाय को आरक्षण दिया गया। यह अलग बात है कि अदालत में नहीं टिक पाया। लेकिन, हर बार आरक्षण का दायरा घटता गया। 2014 में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार ने 16 फीसदी तो साल 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मराठा समुदाय को नौकरी में 12 फीसदी और शिक्षा में 13 फीसदी आरक्षण दिया।

2014 : विधानसभा चुनाव के ऐन मौके पर तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व वाली सरकार ने नौकरी और शिक्षा में 16 फीसदी आरक्षण दिया था, लेकिन हाईकोर्ट में खारिज हो गया था। वहीं, साल 2018 में देवेंद्र की सरकार में सेवानिवृत्त जस्टिस एमजी गायकवाड़ आयोग ने मराठा समाज को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा बताया। इस आधार पर सरकार ने नौकरी में 12 फीसदी शिक्षा में 13 फीसदी आरक्षण दिया। इसे भी बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी लेकिन हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण को मंजूर कर लिया था। परंतु 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण रद्द कर दिया। उसके बाद एकनाथ शिंदे की सरकार ने हाल ही में सेवानिवृत्त जस्टिस सुनील शुक्रे की अध्यक्षता में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया। शुक्रे आयोग की रिपोर्ट में मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना। इसी आधार पर मंगलवार को फिर से मराठा समुदाय को सरकारी नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देने संबंधी विधेयक पारित किया गया।

राजर्षि शाहूजी महाराज ने 1902 में दिया था मराठों को आरक्षण
मराठा आरक्षण विधेयक में यह उल्लेख किया गया है कि राजर्षि शाहू महाराज ने साल 1902 में मराठा समुदाय को आरक्षण का लाभ दिया था। विधेयक में कहा गया है कि पूर्ववर्ती कोल्हापुर रियासत और तत्कालीन मुंबई राज्य ने भी अपनी रिपोर्ट में मराठा समुदाय को पिछड़े वर्गों में से एक के रूप में मान्यता दी थी। 23 अप्रैल, 1942 को मुंबई राज्य के एक प्रस्ताव में मराठा समुदाय को मध्यम और पिछड़े वर्गों में से एक बताया गया था।

अभी यह है राज्य की आरक्षण व्यवस्था
महाराष्ट्र में फिलहाल 52 फीसदी आरक्षण है। इसमें अनुसूचित जाति को 13 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को सात फीसदी, ओबीसी को 19 फीसदी, विशेष पिछड़ा वर्ग को दो फीसदी, विमुक्त जाति को 3 फीसदी, घुमंतू जनजाति (बी) को 2.5 फीसदी, घुमंतू जनजाति (सी) धनगर को 3.5 फीसदी और घुमंतू जनजाति (डी) वंजारी को दो फीसदी आरक्षण प्राप्त है।

ओबीसी के तहत चाहिए आरक्षण, तेज करेंगे आंदोलन : जरांगे
मराठा आंदोलन का चेहरा बने मनोज जरांगे पाटिल समुदाय को मिले 10 फीसदी आरक्षण से संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने धोखा किया है। हम आंदोलन और तेज करेंगे। महाराष्ट्र सरकार 10 या 20 फीसदी आरक्षण दे, उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हम अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत आरक्षण चाहते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.